Vat Savitri Purnima Vrat Importance: वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाएं पति की स्वस्थ जीवन और दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। साथ ही वट सावित्री का व्रत करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है और संतान प्राप्ति की इच्छा भी पूरी होती है। वट सावित्री के दिन बरगद यानी वट वृक्ष के नीचे पूजा करने का महत्व है। वैसे तो ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है जोकि 29 मई 2022 को रखा गया थी। लेकिन इसके बाद एक बार फिर से ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन यानी 14 जून 2022 को वट सावित्री पूर्णिमा व्रत रखा जाएगा। बता दें कि 15 दिन के भीतर दो बार वट सावित्री व्रत़ मनाया जाता है। जानते हैं इसके पीछे का कारण क्या है।
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वट पूर्णिमा व्रत मुहूर्त
ज्येष्ठ पूर्णिमा आरंभ – 13 जून, सोमवार, रात 09:02 बजे से
ज्येष्ठ पूर्णिमा समाप्त – 14 जून, मंगलवार, शाम 05:21 पर
उदयातिथि के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत और वट सावित्री पूर्णिमा व्रत मंगलवार 14 जून 2022 को रखा जाएगा।
क्यों दो बार रखा जाता है वट सावित्री का व्रत
ज्येष्ठ माह की अमावस्या और पूर्णिमा तिथि में पड़ने वाली दोनों वट सावित्री की पूजा विधि और कथा भी समान होती है। इन दोनों व्रतों को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए करती हैं। अमावस्या पर पड़ने वाली वट सावित्री का व्रत विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार ,मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में किया जाता है। वहीं वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत जैसे क्षेत्रों में प्रचलित है। दोनों ही व्रतों में बरगद के पेड़ की पूजा करने का विधान है।
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ये है कारण
अमावस्या और पूर्णिमा तिथि पर पड़ने वाली वट सावित्री में भी वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इसलिए इसे वट पूर्णिमा व्रत के नाम से जाना जाता है। वट सावित्री की कथा में बताया गया है कि, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से तीन वरदान मांगे थे, जिसमें आखिरी वरदान में सावित्री ने 100 पुत्रों की मां होने का वरदान मांगा था। ऐसे में यमराज को सत्यवाण के प्राण लौटाने पड़े थे। कहा जाता है कि यह दिन ज्येष्ठ अमावस्या का दिन था। इसी कारण ज्येष्ठ माह के अमावस्या के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इसके 15 दिन बाद ज्येष्ठ पूर्णिमा पर महिलाएं वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत पति की प्राण रक्षा, लंबी आयु और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं। दोनों ही वट सावित्री व्रत की महत्ता भी समान होती है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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