Geeta Gyan In Lock down Part 4: गीता :अध्याय 16 श्लोक 21
त्रिविधं नरकसयेदँ द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्रयं त्यजेत।।
भावार्थ: परमपिता भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि नरक के तीन द्वार हैं काम,क्रोध तथा लोभ। आत्मा को अधोगति में ले जाने वाले ये तीनों विकार हैं। काम, क्रोध व लोभ आत्मा का नाश कर देते हैं। इसलिए इन तीनों दोषों का समूल नाश कर देना चाहिए।
दार्शनिक व यथार्थ व्याख्या: काम वह अग्नि है जिसमें व्यक्ति शुभ व अशुभ तथा सही व गलत का विचार नहीं कर पाता है।क्रोध ऐसा दानव है जो क्रोध करने वाले का विनाश पहले करता है।लोभ के कारण हिंसा हो सकती है। काम व क्रोध के वशीकरण होकर व्यक्ति अपने रिश्तों तक को भूल सकता है। यदि कभी आप परिवार में ही पत्नी पर ही क्रोध कर बैठे।क्रोध में हाथ छोड़ दिए या उससे भी आगे बढ़ गए तो विनाश तो आपका ,पत्नी का व आपके बच्चों का ही तो होगा। क्रोध हिंसा को जन्म देता है।
बहुत सामान्य विवाद की स्थिति होने पर ही क्रोध में आकर कोई व्यक्ति किसी की जान तक ले सकता है।लोभ तो ऐसी बुरी वृत्ति है जिसके चंगुल में एक बार यदि फंस गए फिर उससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो सकता है। परिवार में ही किसी की संपत्ति का लोभ ,,व्यवसाय में ही लोभ के चक्कर में कुछ गलत कार्य व यहां तक कि मित्रों से ही लोभ के कारण विवाद इत्यादि कर्म ऐसे हैं जिससे सिर्फ व सिर्फ कष्ट व दुख मिलना है।इसीलिए भगवान कृष्ण ने काम,क्रोध व लोभ को नरक का द्वार कहा है। द्वार से ही प्रवेश होता है।
इसलिए भगवान ने यहां स्पष्ट कर दिया है कि यदि तीनों दोषों में कोई भी दोष आपके अंदर विद्यमान है तो नरक का प्रवेश द्वार आपके स्वागत में खड़ा है तथा आत्मा के अधोगति यानि अवनति की बात कही है।आत्मा अपने कर्म व तप से उन्नति की ओर बढ़ती है व परम उन्नति प्राप्त करने में कई जन्म लग जाते हैं लेकिन दिशा तो सही है। यदि हम इन तीनों का समूल नाश करके भगवान की भक्ति करते हैं तो ईश्वर हमको अपनी अविनाशी भक्ति प्रदान करते हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका अर्थ: यह समय एकांतवास का है।याद करो कब क्रोध किए।किस पर किये।क्यों किए?कहीं आप गलत तो नहीं थे। आपने कहीं लोभ में आकर कोई पाप तो नहीं कर दिये! यह समय चिंतन व आत्मवलोकन का है।उन पापों का प्रायश्चित करें।काम,क्रोध व लोभ का समूल नाश करने का संकल्प लें व अपने जीवन को श्री कृष्ण भक्ति में समर्पित करें!
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