नई दिल्ली : चैत्र शुक्ल खष्ठी या षष्ठी पर माता दुर्गा के छठे स्वरूप माता कात्यायनी को ही छठ माता के रूप में पूजा की जाती है। एक बात स्पष्ट कर दें कि कार्तिक की छठ पूजा और इसमें अंतर है वो संतान के हेतु उदित और अस्तांचल सूर्य की पूजा है और यह माता दुर्गा के छठ माता स्वरूप कात्यायनी की पूजा है। स्कन्द कुमार माता पार्वती और शिव के पुत्र हैं जिनको कुमार कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है।
नवरात्र की छठ पूजा में माता शक्ति की पूजा भी संतान की योग्यता और उसके विद्वान होने की मनोकामना हेतु करते हैं। स्कन्द जी बुद्धि और विवेक के देवता हैं। छठ नवरात्र को माता की पूजा अर्चना करके एक विशेष मंत्र का जप करें -
देहि सौभाग्य मारोग्यम् देहिमें परमम् सुखम्
रूपं देहि जयम् देहि यशो देहि द्विषो जहि।
इसका अर्थ है - हे माता कात्यायनी हमको निरोग करो,सौभाग्य वृद्धि करो,हमारे जीवन में यश मिले और हमारे अंदर के विकार नष्ट हों।
इस मन्त्र को संतान की सफलता हेतु कम से कम पांच माला जपें।
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पाएं रोग मुक्ति का वरदान
इस दिन सिद्धिकुंजिकस्तोत्र भी लाभ करता है। सन्तानगोपाल की पूजा भी लाभप्रद रहेगी। ज्योतिष में कुंडली का छठा भाव रोग का होता है। छठ पूजा के दिन छठे भाव में स्थित ग्रह की वस्तुओं का दान करने से रोग का शमन होता है। माता कात्यायनी और स्कंदमाता के सम्मुख माता का 108 नाम का जप और सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करें जिससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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छठ की रात्रि में कर सकते हैं तांत्रिक साधना-
संतान की सफलता के लिए करें उपाय
ज्योतिष के जानकार सुजीत महाराज बताते हैं कि यदि आपकी संतान का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है तो देवीसूक्तम के साथ माता कात्यायनी की पूजा करें, संतान को सफलता की प्राप्ति होगी। माता कात्यायनी के सम्मुख 6 घी का दीपक जलाएं। अड़हुल के पुष्प और सुगन्धित अगरबत्ती दिखाके माता का श्रृंगार करें और अंत में माता की आरती कर प्रसाद का वितरण करें।
प्रसाद फलाहारी होना चाहिए क्योंकि अभी आपके व्रत का पारन सम्पूर्ण नहीं हुआ है। इस प्रकार छठ माता की पूजा जो श्रद्धा भाव से करता है माता उसकी हर मुरादें पूरा करती हैं।
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इसी दिन यमुना जयंती भी
चैत्र नवरात्र की छठ (चैत्र शुक्ल षष्ठी) को यमुनाजी का जन्मोत्सव यमुना-जयंती के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि यमुना जी को श्री कृष्ण की पटरानी बताया जाता है। मथुरा और वृंदावन में यमुना षष्ठी को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाते हैं।
वहीं यमुना का जल श्यामवर्ण माना है। वामन पुराण में प्रसंग है कि सती जी की भस्म को शरीर पर लगाकर व्यग्र शिवजी यमुना-जल में कूद पड़े, इससे यमुना कृष्णवर्णा (कृष्णा) हो गईं। एक मान्यता ये भी है कि श्री कृष्ण के पानी में उतरने की वजह से ही यमुना जी की रंग श्याम हो गया।
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