आचार्य चाणक्य की नीतियों से सीख यदि कोई ले तो उसे जीवन में कभी किसी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ेगा। चाणक्य की नीतियां बहुत ही खरी और और सत्यता पर आधारित हैं। यही कारण है कि चाणक्य ने अपने जीवन काल में बहुत से युद्ध और षड्यंत्र को अपनी सूझबूझ और बौद्धिक क्षमता के बल पर ही खत्म कर दिया था।
चाणक्य की नीतियां हर काल में प्ररासंगिक रही है, क्योंकि मानव की सोच हर काल में लगभग समान ही रही है। यही कारण है कि चाणक्य की नीतियों से हमेशा हर किसी को सीख लेनी चाहिए। चाणक्य ने मनुष्य को जीवन में सफल होने के मूलमंत्र भी बताएं हैं। उनका कहना है कि मनुष्य यदि चार चीजों का त्याग कर दे तो उसे जीवन के हर कार्य में सफलता मिलेगी।
इन चार चीजों का त्याग, दिलाएगा जीवन में सफलता
झूठ का करें त्याग : चाणक्य ने हर मनुष्य को यही सीख दी है कि झूठ किसी और का नहीं बल्कि उनका ही नाश करता है। झूठ एक ऐसा हथियार होता है जो समय पर कभी नहीं चलता। इसलिए जो भी झूठ का त्याग करते हैं, वह जीवन में हमेशा आगे की ओर बढ़ते हैं और समाज में उनका सम्मान भी होता है। झूठ इंसान के चरित्र का भी हनन करता है। झूठे भले ही तेज गति से आगे बढ़ते शुरुआत में नजर आते हैं, लेकिन जब वे गिरते हैं तो फिर उठ नहीं पाते। इसलिए सफलता पाने के लिए झूठ का त्याग करना होगा।
आलस का करें परित्याग : चाणक्य का कहना है जो इंसान आलस में घिरा होता है वह कभी भी सफल नहीं हो सकता। आलस घुन की तरह शरीर को खाती है और आलस करने वाला मनुष्य कभी कोई काम समय पर नहीं करता है। काम का महत्व हमेशा समय पर होता है। समय बीतने के बाद किया गया उत्तम कार्य भी निरर्थक होता है। इसलिए सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिए आलस का त्याग करना होगा।
बुराई इंसान को मारती है : चाणक्य का कहना है कि जो मनुष्य किसी की बुराई में लग जाता है, वह सफलता से कोसो दूर हो जाता है। किसी की बुराई ढूंढने में ही सारा वक्त और ऊर्जा खर्च होने लगती है और कमियां ढ़ूढ़ने के चक्कर में इंसान खुद का भला करना भूल जाता है। इसलिए सफलता चाहिए तो लोगों की बुराई करने की जगह खुद की कमियां ढूंढें।
जलन कभी आगे नहीं बढ़ने देती : आचार्य चाणक्य ने सफला पाने की दिशा में सबसे अंतिम बुराई जिसे माना है, वह है ईर्ष्याया किसी से जलन करना। चाणक्य का कहना है ईर्ष्या मनुष्य की दुश्मन होती है। जो मनुष्य किसी से ईर्ष्या रखता है वह सकारत्मक सोच नहीं रखता है। सकारात्मक सोच यदि किसी की नहीं होगी तो वह मनुष्य कभी आगे नहीं बढ़ सकता है। ईर्ष्या मनुष्य के अंदर कुढ़न लाती है और इसके कारण इंसान अंदर ही अंदर खत्म होता जाता है। इसलिए सफलता पाना है तो ईर्ष्या का त्याग करें।
तो चाणक्य की बताई ये चार बुराईंया इंसान को कभी अपने अंदर विकसित नहीं होने देनी चाहिए, क्योंकि इससे सफलता की राह में रोड़ा आने लगता है।
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