एक घोर निर्धन परिवार में जन्मे चाणक्य अपने गुण औऱ उग्र स्वभाव के कारण कौटिल्य कहलाए। चाणक्य ने उस समय के महान शिक्षा केंद्र तक्षशिला से शिक्षा ग्रहंण कर 26 वर्ष की आयु में समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र में शिक्षा पूर्ण कर लिया था। इसके बाद नालंदा विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया। भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के पितामह के जाने वाले आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में ना केवल व्यक्तिगत जीवन में आने वाली परेशानियों का हल निकाला है बल्कि उन्होंने विद्यार्थियों के लिए सफलता का मूलमंत्र भी बताया है।
चाणक्य के अनुसार विद्यार्थियों को इन चीजों का त्याग कर देना चाहिए अन्यथा वह गलत रास्ते पर भटक सकते हैं। आइए जानते हैं।
1. आलस
आलसी व्यक्ति या छात्र का ना तो वर्तमान होता है ना ही भविष्य, आचार्य चाणक्य के अनुसार आलस किसी रोग से कम नहीं है। इस रोग से विद्यार्थियों को दूर रहना चाहिए। आलस व्यक्ति को असफलता की ओऱ धकेल देता है। इसलिए विद्यार्थी को अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आलस का त्याग करना आवश्यक है।
2. क्रोध
आचार्य चाणक्य के अनुसार क्रोध मनुष्य को बरबाद कर देता है। क्रोधी व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता। क्रोध व्यक्ति के सोचने समझने की शक्ति को नष्ट कर देता है। क्रोध में व्यक्ति कोई भी कदम उठा लेता है फिर चाहे वह उसके लिए क्यों ना मुसीबत बन जाए। ऐसे में विद्यार्थियों को क्रोध से दूर रहना चाहिए।
3. गुरु का अपमान
एक विद्यार्थी को भूलकर भी गुरु का अपमान नहीं करना चाहिए, गुरु का अपमान करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता। आचार्य चाणक्य के अनुसार पुस्तकों के पढ़ने से विद्या नहीं आती, विद्या गुरु के सान्निध्य से प्राप्त होती है। केवल पुस्तकों के ज्ञान को प्राप्त करने वाला विद्वान सभा में उसी प्रकार बैठता है, जिस प्रकार कोई दुराचारिणी स्त्री गर्भधारण करने पर भी समाज में कभी सम्मानित नहीं होती।
4. अतिनिद्रा का त्याग करें
एक विद्यार्थी के लिए एक दिन में 8 घंटे की नींद पर्याप्त होती है। आचार्य चाणक्य के अनुसार अतिनिद्रा की स्थिति आपके लक्ष्य प्राप्ति में बाधा बन सकती है। इसलिए एक अच्छे विद्यार्थी को अतिनिद्रा की स्थिति का त्याग कर देना चाहिए।
5. लालच
लालच लक्ष्य प्राप्ति और अध्ययन के मार्ग में बड़ा रोधक है। लालच छात्रों के लक्ष्य में बाधा पैदा कर सकता। ऐशे में छात्रों को लालच वश किसी कार्य को नहीं करना चाहिए।
6. स्वाद, श्रंगार और मनोरंजन का करें त्याग
आचार्य चाणक्य के अनुसार एक विद्यार्थी का जीवन तपस्वी की भांति माना जाता है। ऐसे में एक छात्र को तपस्वी की भांति स्वादिष्ट भोजन, श्रंगार और मनोरंजन का त्याग करना चाहिए। एक छात्र को संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए।
7. माता पिता का भूलकर भी ना करें अपमान
एक मनुष्य व विद्यार्थी को माता पिता का भूलकर भी अपमान नहीं करना चाहिए। माता पिता की उपाधि भगवान से भी उच्च होती है। इसलिए भूलकर भी मां बाप का अपमान ना करें।
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