Chanakya Niti: जवानी की ये अच्‍छी आदतें संवार देती हैं मनुष्‍य का बुढ़ापा, अपना ली तो जीवन रहेगा सुखमय

Chanakya Niti in hindi: आचार्य चाणक्‍य का मानना है कि मनुष्‍य जीवन मेंउसकी जवानी सबसे अहम होती है। इस उम्र में अर्जित किया गया सम्‍मान, सुख-शांति और ऐश्वर्य बुढ़ापे का सहारा बनता है। अगर व्‍यक्ति अपनी जवानी में कुछ बातों का ध्‍यान रखें तो उसका बुढ़ापा भी संवर सकता है।

Chanakya Niti
जवानी की ये अच्‍छी आदतें बनती हैं बुढ़ापा का सहारा  |  तस्वीर साभार: Representative Image
मुख्य बातें
  • संस्‍कारी पुत्र संवार सकते हैं मनुष्‍य का बुढ़ापा
  • अच्‍छा चरित्र देता है बुढ़ापे में व्‍यक्ति को सहारा
  • लोगों की मदद करेंगे तो कल लोग आपकी मदद करेंगे

Chanakya Niti in hindi: आचार्य चाणक्‍य का मानना है कि मनुष्‍य के जीवन में सुख और दुख धूप-छांव की तरह होते हैं। यह सभी के जीवन में आता-जाता रहता है। इसलिए मनुष्य को हर परिस्थिति में संघर्ष करने और आगे बढ़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। आचार्य ने नीतिशास्‍त्र में मनुष्‍य के जीवन चक्र के बारे में बताते हुए कहा है कि मानव के जीवन में बाल्‍यावस्‍था, युवावस्‍थ्‍या और बुढ़ापा मुख्‍य होते हैं। बाल्‍यवस्‍था जहां परिवार के संरक्षण में बीतता है, वहीं  युवावस्‍थ्‍या लोगों को अपना भविष्‍य बनाने और सुख-शांति, ऐश्वर्य और सम्मान पाने का मौका देता है। अगर इस समय का सही उपयोग किया जाए तो बुढ़ापा को शानदार बनाया जा सकता है।

बच्‍चें को दें अच्‍छा संस्‍कार

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुढ़ापा सवारने में सबसे ज्‍यादा मदद पुत्र करते हैं। अगर किसी व्‍यक्ति को आज्ञाकारी पुत्र मिल जाए तो उसके लिए यह सबसे बड़ा सुख होता है। अगर आप अपने पुत्र को पैदा होने के बाद अच्‍छे संस्‍कार दिए हैं तो वह बड़ा होकर संस्‍कारी बनेगा। वहीं, अगर व्‍यक्ति अपने बच्चे को अच्‍छा संस्‍कार नहीं देता तो बच्चा भी बड़ा होकर आपका सम्मान नहीं करेगा।

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स्वच्छ चरित्र

आचार्य चाणक्‍य का मानना है कि व्‍यक्ति का चरित्र जीवन को सहारा देने में अहम भूमिका निभाता है। यदि किसी व्‍यक्ति का चरित्र गलत है तो बुढ़ापे में आपका बेटा भी आपका साथ छोड़ सकता है। वहीं, जिनका चरित्र स्वच्छ रहता है बुढ़ापे में लोग आपकी इज्जत करेंगे। समाज में सम्‍मान भी ऐसे ही लोगों को मिलता है।  

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पद का घमंड न करें

आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि व्‍यक्ति को कभी भी अपने पद का घमंड नहीं करना चाहिए। जो लोग अपनी जवानी के दिनों में बड़े पद पर आने के बाद दूसरों को तुच्छ समझते हैं, उन्‍हें बुढ़ापे में समाज के अंदर सम्‍मान नहीं मिलता है। ऐसे लोगों का जब पद और प्रतिष्ठा खत्‍म हो जाती है तो लोग भी साथ छोड़ देते हैं।

मददगार बनें

आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि अपने बुढ़ापे को सवांरने का सबसे आसान तरीका दूसरों की मदद करना है। अगर आप लोगों की मदद करेंगे तो कल लोग आपकी मदद करेंगे। इसलिए सामर्थ्य अनुसार हमेशा दूसरों की मदद करना चाहिए। इससे समाज में सम्‍मान मिलने के साथ कल भी संवर जाता है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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