Chankya Neeti: आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में मुनष्य को बहुत सी बातें बताई हैं। एक सामान्य इंसान भी उनकी नीतियों का पालन कर विशिष्ट गुणों वाला बन सकता है। उनकी नीतियां इंसान को जीवन में आगे बढ़ने को प्ररेरित करती है साथ ही सतर्क करती हैं कि जीवन में आने वाली परेशानियों से कैसे निकला जा सकता है। समय की पहचान, विपरीत परिस्थितियों में लोगों की पहचान और ज्ञान की जरूरत आदि विषयों पर अपनी नीतियों के जरिये बहुत कुछ बताया है। इसी क्रम में वह मनुष्य को यह भी बताते हैं कि जीवन में हर किसी को गुरु की जरूरत होती है, लेकिन हर किसी को गुरु नहीं बनाया जा सकता है। गुरु में भी विशेषता देखनी चाहिए।
आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक के जरिये यह बताया है कि गुरु का त्याग एक शिष्य को कब करना चाहिए। साथ ही यह भी बताया है कि किन परिस्थितियों में कब किसका त्याग कर देना चाहिए। सर्वप्रथम उनके इस श्लोक को जानें।
त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्। त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या निःस्नेहान्बान्धवांस्यजेत्॥
चाणक्य ने लिखा है कि जिस गुरु के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है उसे उसे त्याग देना चाहिए। जिस शिक्षक के पास ज्ञान का अभाव हो, उस शिक्षक को त्याग देना चाहिए। वहीं उस धर्म को भी त्याग देना चाहिए जिसमें दया या त्याग भावना न हो। क्रोधी पत्नी और स्नेहहीन बंधुओं का त्याग करना उचित होता है।
जो गुरु अपने शिष्य को केवल शिक्षा दे कर अपने काम को पूरा समझता है, वह सही मायने में सफल शिक्षक नहीं हो सकता है।
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