Chhath 2020 Kharna Date: छठ पूजा में कब है खरना? जानिए खरना के दिन की विधि 

Chhath Kharna Date 2020: छठ का महान पर्व 18 नवंबर से शुरू हो रहा है। यह पर्व चार दिनों का का है जिसमें खरना दूसरा देन होता है। इस बार खरना 19 नवंबर को है।

Chhath 2020 Kharna Date:
Chhath 2020 Kharna Date: छठ पर्व में खरना 19 नवंबर को है।  
मुख्य बातें
  • छठ पूजा में चार दिनों की विधि होती है
  • इन विधियों को खरना,नहाय खाय,षष्टमी और सप्तमी के तौर पर जाना जाता है
  • छठ का पर्व 18 नवंबर से 21 नवंबर तक है

नई दिल्ली: हिंदू धर्म संस्कृति में खासकर पूर्वांचल के लिए छठ पूजा का विशेष महत्व है। दरअसल यह पर्व सूर्य भगवान की अराधना का है जिसमें व्रती लंबा उपवास करते हुए दो दिन याानी सुबह और शाम का अर्घ्य देते हैं। कार्तिक महीने में मनाया जाने वाला छठ पूजा एक महान पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य भगवान की पूजा होती है। छठी मैया सूर्य की मानस बहन हैं। गौर हो कि उदित और अस्त सूर्य की उपासना केवल छठ पर्व में ही होती है। इस पर्व का महत्व इसलिए भी है कि इसमें  उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

खरना का महत्व
कार्तिक शुक्ल पंचमी को यह व्रत रखा जाता है और शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे यह खरना कहा जाता है। इस दिन बिना अन्न और जल के रहा जाता है। नमक और चीनी का प्रयोग बिल्कुल वर्जित होता है। गुड़ की बनी खीर वितरित की जाती है। छठ पर्व की शुरुआत का यह दूसरा दिन होता है। इस दिन प्रसाद के रुप में रोटी और खीर ग्रहण करने की परंपरा है। सब कुछ नियम धर्म के मुताबिक होता है। घर के सभी सदस्य व्रती को पूरा सहयोग करते हैं। इस बार खरना 19 नवंबर को है। 

नहाय खाय का महत्व

छठ पर्व की शुरुआत इसी दिन से होती है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय होता है। इस दिन व्रती नदी में या घर पर ही जल में गंगा जल डालकर स्नान करता है। व्रती स्नान करने के बाद नया वस्त्र धारण करता है। नया वस्त्र धारण करने के बाद वह भोजन ग्रहण करता है। उसके भोजन करने केबाद ही  घर के और सदस्य भोजन करते हैं।

छठ का पर्व एक कठिन व्रत 

कार्तिक शुक्ल पक्ष खष्ठी यानी छठे दिन यह पर्व मनाया जाता है। छठ का व्रत काफी कठिन होता है इसलिए इसे महाव्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन छठी देवी यानी छठी मईयां की पूजा की जाती है। छठ देवी सूर्य की बहन हैं लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। छठ माता संतान प्रदान करती हैं और इस पर्व से योग्य संतान पैदा होती है

नहाय खाय से लेकर अस्त और उदित सूर्य के अर्ध्य देने तक का मतलब है सूर्य और उनको मानस बहन छठ माता की पूर्ण उपासना। ऐसा करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं। इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करने से संतान की प्राप्ति और संतान योग्य होती है।

छठ पूजा के 4 दिन एवं पूजा विधि- 

1. पहला दिन नहाय खाय-चतुर्थी
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को यह व्रत आरंभ होता है। इसी दिन व्रती स्नान करके नए वस्त्र धारण करते हैं।
2. दूसरा दिन खरना-पंचमी
कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना बोलते हैं। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती भोजन करते हैं।
3. षष्ठी
इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाते हैं। इस दिन ठेकुआ या टिकरी बनाते हैं। प्रसाद तथा फल से बाँस की टोकरी सजाई जाती है। टोकरी की पूजा कर व्रती सूर्य को अर्ध्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। 
4. सप्तमी
सप्तमी को प्रातः सूर्योदय के समय विधिवत पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं।

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