Dwijpriya Sankashti Chaturthi 2022 Date, Time, Puja Muhurat in India: हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पावन पर्व मनाया जाता है। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहते हैं। वहीं फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijpriya SankashtiChaturthi 2022 Date) कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार विघ्नहर्ता द्विजप्रिय भगवान गणेश के चार सिर और चार भुजाएं हैं। मान्यता है कि भगवान गणेश के इस स्वरूप की विधि विधान से पूजा अर्चना करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और स्वस्थ जीवन के साथ सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत ((Dwijpriya SankashtiChaturthi 2022 kab hai) बेहद खास माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी के नाम मात्र का स्मरण करने से मनुष्य के सभी दुख दूर होते हैं। ऐसे में इस लेख के माध्यम से आइए जानते हैं साल 2022 में कब द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है र क्या है इसका महत्व।
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हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इस बार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 20 फरवरी 2022, रविवार को है। चतुर्थी तिथि 19 फरवरी 2022, शनिवार को रात 09 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर 20 फरवरी की रात को 09 बजकर 05 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन चंद्रोदय 09 बजकर 50 मिनट पर होगा।
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Dwijpriya Sankashti Chaturthi 2022 Date And Shubh Muhurat, द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
Dwijpriya Sankashti Chaturthi Importance And Significance, द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व
भगवान गणेश सभी देवी देवताओं में प्रथम पूजनीय माने जाते हैं, विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा अर्चना के बाद ही अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत कर विधिवत गौरी गणेश जी की पूजा अर्चना करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। लेकिन ध्यान रहे चंद्र दर्शन के बाद ही द्विजप्रिय संकष्टी व्रत संपूर्ण माना जाता है। इसलिए चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें और पूजन करें। ब्रह्म पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार स्वयं ब्रह्मा जी ने संकष्टी चतुर्थी के व्रत की महत्ता का उल्लेख किया है।
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