नई दिल्ली:देशभर में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्यौहार 21 जुलाई यानी आज मनाया जा रहा है। ईद-उल-अजहा बलिदान का त्योहार है और यह अल्लाह के प्रति समर्पण का उदाहरण है।यह त्योहार खुशियां बांटने और गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद करने का भी एक अवसर है। ईद-उल-अजहा को बकरीद भी कहा जाता है।
ईद-उल-अजहा प्रेम, निस्वार्थता और बलिदान की भावना के प्रति आभार व्यक्त करने और एक समावेशी समाज में एकता और भाईचारे के लिए मिलकर काम करने का त्योहार है।
मीठी ईद यानी ईद उल फितर के 70 दिन के बाद बकरीद का त्यौहार मुस्लिम धर्म के लोग मनाते है। ईद उल ज़ुहा भारत और दुनिया भर में पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जाता है।ईद उल जुहा के दौरान मुसलमान ईदगाह या मस्जिद में जमा होते हैं और जमात के साथ 2 रकात नमाज अदा करते हैं। यह नमाज अमूमन सुबह के समय आयोजित की जाती है।
Bakra Eid kab hai 2021/भारत में बकरीद कब है
2021 में भारत में बकरीद 21 जुलाई को मनाया जाएगा। ईद उल अजहा इस्लामी कैलेंडर का 12वां और आखिरी महीना होता है। रविवार को दिल्ली जामा मस्जिद के नायब शाही इमाम सैयद शाबान बुखारी ने इसका ऐलान किया गया।
बकरीद पर क्या होता है?
बकरा ईद के पर सबसे पहले मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और सगे संबंधियों को दिया जाता है। वहीं, तीसरे हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
मीठी ईद और बकरीद में क्या अंतर है?
मीठी ईद की तरह बकरीद भी खुशी के साथ मनाई जाती है बस ईद-उल-फितर और बकरीद में में फर्क इतना है कि ईद-उल-फितर खुशी के तौर पर देखा जाता है रमजान के तोहफे के तौर पर मनाई जाती है और eid-ul-adha यानी की बकरीद गरीब और मुस्लिमों के लिए उनके साथ मिलकर मनाई जाती है । कुर्बानी का जो कांसेप्ट है उसका भी यही मतलब है कि वह गोश्त गरीबों में तक्सीम करें ताकि गरीबों को एक वक्त का खाना मिल सके। नमाज अदा करने के बाद वे भेड़ या बकरी की कुर्बानी (बलि) देते हैं और परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और गरीबों के उसे साझा करते हैं।
बकरा ईद का महत्व क्या है
मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है। बकरा ईद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। ईद-उल-अजहा को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े तो खुदा ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइल की कुर्बानी को दुंबे की कुर्बानी में परिवर्तित कर दिया।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल