हनुमान जी के कई चमत्कारिक मंदिरों के बारे में आपने सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता हैं कि बालब्रह्मचारी हनुमान जी का एक पुत्र भी था? इतना ही नहीं, बजरंगबली का एक मंदिर ऐसा हैं, जहां वह अपने पुत्र संग विराजमान हैं? जी हां, बजरंगबली का एकमात्र यही मंदिर हैं, जहां उनकी पूजा उनके पुत्र के साथ होती है। उनका ये पुत्र कब और कैसे हुआ था, इससे जुड़ी एक कथा पुराणों में वर्णित है।
बजरंगबली को अपने पुत्र के बारे में तभी पता चला था जब वह भगवान श्रीराम और लक्ष्मणजी को पाताललोक में छुड़ाने पहुंचे थे और यहां उन्होंने अपने पुत्र संग भयंकर युद्ध किया था। पुत्र को पराजित कर वह भगवान राम को पाताल लोक से छुड़ा कर लाए थे। वहीं उनको यह पता चला था कि उनका एक पुत्र भी है। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज था। तो आइए आज आपको गुजारात के इस 500 साल पुराने मंदिर और मकरध्वज के जन्म से जुड़ी कथा के बारे में बताएं।
द्वारका से चार मील दूर बेटद्वारका हनुमान दंडी मंदिर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार यह वही स्थान है जहां हनुमान जी अपने पुत्र से पहली बार मिले थे। इस स्थान पर अपने पुत्र मकर ध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। यही नहीं लोगों का यह भी कहना है कि जब इस मंदिर में मकरध्वज की मूर्ति स्थापित की गई थी तब वह अपने पति बजरंगबली से छोटी थी लेकिन कालांतर में यह बढ़ते हुए अब बजरंगबली के बराबर हो चुकी है। भगवान हनुमान के इस प्रसिद्ध मंदिर का नाम दांडी हनुमान मंदिर है।
मंदिर का इतिहास करीब 500 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर बजरंगबली अपने पुत्र मकरध्वज के साथ पूजे जाते हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही सामने मकरध्वज और उनके पास ही हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। दोनों ही प्रतिमा बहुत ही प्रसन्नचित मुद्रा में विराजमान है, खास बात तो यह है की उनके हाथों में कोई शस्त्र नहीं है। वैसे कहीं-कहीं पर हनुमान जी और मकरध्वज के दो मंदिर होने का भी जिक्र मिलता है।
मकरध्वज से जुड़ी है यह कथा
जब रावण के भाई अहिरावण ने छल से भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जी को मुर्छित कर पाताल लोक में बंदी बना लिया थ तब हनुमानजी जी उन्हें छुड़ाने वहां पहुंचे थे। तब द्वार पर उन्हें मकरध्वज मिला था और तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली से हुआ था। कहते हैं कि पहले हिंदू धर्म को मानने वाले ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान श्रीराम के परमभक्त व भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार श्रीहनुमानजी बालब्रह्मचारी थे।
धर्म शास्त्रों के अनुसार जिस समय हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे।
उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पड़ा “मकरध्वज”। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था। मकरध्वज को अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था। जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई।
तत्पश्चात हनुमानजी और मकरध्वज के में घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है। मकरध्वज व हनुमानजी का यह पहला मंदिर गुजरात के भेंटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलो मीटर अंदर की ओर है।
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