... तो इस वजह से गणेश भगवान जी को चढ़ाते हैं दूर्वा

आध्यात्म
Updated Sep 04, 2017 | 16:28 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति भगवान गणेश जी को प्रथम पूज्य माना है और किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा और उनका ध्यान किया जाता है. गणपति को विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धी का स्वामी कहा जाता है. इनका स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है. वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है.

 तस्वीर साभार: TOI Archives

नई दिल्ली: विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति भगवान गणेश जी को प्रथम पूज्य माना है और किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा और उनका ध्यान किया जाता है. गणपति को विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धी का स्वामी कहा जाता है. इनका स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है. वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है. 

गणेश का मतलब है गणों का स्वामी. किसी पूजा, आराधना, अनुष्ठान व कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न-बाधा न पहुंचाएं, इसलिए सर्वप्रथम गणेश-पूजा करके उसकी कृपा प्राप्त की जाती है. गणेश जी को दूर्वा चढानें की मान्यता है माना जाता है कि उन्हे दूर्वा चढानें से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, क्योंकि श्री गणेश को हरियाली बहुत पंसद है. 

गणेशजी की पूजा में कई चीजें चढ़ाई जाती है जिसमें दूर्वा का विशेष महत्व होता है. इसके बिना गणेश जी की पूजा अधूरी समझी जाती है. भगवान गणेश को तो दूर्वा काफी प्रिय होती है, लेकिन तुलसी को इनकी पूजा में प्रयोग करने की मनाही होती है.

इसके पीछे एक कथा बताई जाती है कि एक असुर रहा करता था जिसका नाम अनलासुर था. जिसने स्वर्ग और पृथ्वी पर सभी को परेशान करता था. वह ऋषि-मुनियों,देवताओं और आम लोगों को जिंदा ही खा जाया करता था. तब सभी देवता इस राक्षस के सर्वनाश के लिए महादेव के पास प्रार्थना करने के लिए कैलाश पर्वत जा पहुंचे.
तब शिवजी ने सभी देवी-देवताओं की बात सु्नकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल गणेश ही कर सकते हैं. इसके बाद भगवान गणेश ने अनलासुर को निगल लिया जिसकी वजह से उनकी पेट में जलन होने लगी जो शांत नहीं हो पा रही थी. तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर गणेश जी को खाने को दी. तब जाकर उनकी पेट की जलन शांत हो गई. तभी से गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई.

कहा जाता है कि गणेश जी को हमेशा दूर्वा का जोड़ा बनाकर चढ़ाना चाहिए यानि कि 22 दूर्वा को जोड़े से बनाने पर 11 जोड़ा दूर्वा का तैयार हो जाता है. जिसे भगवान गणेश को अर्पित करने से मनोकामना की पूर्ति में सहायक माना गया है.

दूर्वा एक प्रकार की घास है. जिसे किसी भी बगीचे में आसानी से उगाया जा सकता है.  भगवान श्रीगणेश को अर्पित की जाने वाली दूर्वा श्री गणेश को 3 या 5 गांठ वाली दूर्वा अर्पित की जाती है. किसी मंदिर की जमीन में उगी हुई या बगीचे में उगी हुई दूर्वा लेना चाहिए. ऐसी जगह जहां गंदे पानी बहकर जाता हो और दूर्वा उग आयी हो . वहां से दूर्वा का चुनाव नहीं किया जाना चाहिए. 

श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने का मंत्र श्री गणेश को 22 दूर्वा इन विशेष मंत्रों के साथ अर्पित की जानी चाहिए.

इन मंत्रों के साथ गणेश जी को 11 जोड़ा दूर्वा चढ़ाए-

ऊं गणाधिपाय नमः
ऊं उमापुत्राय नमः
ऊं विघ्ननाशनाय नमः

ऊँ विनायकाय नमः
ऊं ईशपुत्राय नमः
ऊं सर्वसिद्धिप्रदाय नमः

ऊँएकदन्ताय नमः
ऊं इभवक्त्राय नमः
ऊं मूषकवाहनाय नमः
ऊं कुमारगुरवे नमः रिद्धि-सिद्धि सहिताय

श्री मन्महागणाधिपतये नमः 

यदि आपको लग रहा कि इन मंत्रों को बोलनें में आपको परेशानी होगी तो इस मंत्र को बोल कर गणेश जी को दूर्वा अर्पण करें.

श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।

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