Teacher Of God Rama: जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। गुरु का महत्व आज से ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया गया है। व्यक्ति को माता-पिता के बाद जो भी कुछ सिखाया जाता है वह गुरु द्वारा ही सिखाया जाता है। आम व्यक्ति ही नहीं भगवान भी गुरु में समर्पित रहे हैं। भगवान श्रीराम ने वशिष्ट, विश्वामित्र, भारद्वाज व अगस्त्य कि शिष्य के रूप में ही अपनी समस्त शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान राम के जीवन में भी गुरुओं का विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं शिक्षक दिवस के मौके पर भगवान राम के उन चार गुरुओं की बारे में जिनके बिना भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं बन पाते।
महर्षि विश्वामित्र
महर्षि विश्वामित्र भगवान राम के गुरु थे। जिन्होंने त्रेता युग में भगवान श्रीराम को धनुर्विद्या और शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया था। भगवान राम को परम योद्धा बनाने के पीछे विश्वामित्र ही थे। भगवान राम के पास जितने भी दिव्य शास्त्र थे वे सब विश्वामित्र के ही दिए हुए थे। हिंदू शास्त्र के अनुसार महर्षि विश्वामित्र को त्रेता युग का सबसे बड़ा आयुध आविष्कारक माना जाता है।
ऋषि वशिष्ठ
वहीं ऋषि वशिष्ठ ने भगवान राम को राजपाट संभालने का ज्ञान दिया था। इसके साथ ही वेदों की भी शिक्षा ऋषि वशिष्ठ ने ही भगवान राम को दी थी। यही नहीं भगवान राम का राज्याभिषेक भी ऋषि वशिष्ठ के हाथों ही हुआ था। ऋषि विशिष्ट का भगवान राम के जीवन में विशेष महत्व है।
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महर्षि भारद्वाज
महर्षि भारद्वाज ने भगवान राम को विमान का ज्ञान दिया था। भारद्वाज ऋग्वेद के छठे मंडल की ऋषि रूप में विख्यात है। रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने महर्षि भारद्वाज से ही परामर्श पर वनवास की अवधि में चित्रकूट में वास किया था। लंका विजय के उपरांत लौटते समय भी भगवान राम इनके आश्रम में रुके थे।
ब्रह्मर्षि अगस्त्य
भगवान राम के जीवन में ब्रह्मर्षि अगस्त्य का विशेष महत्व है। ब्रह्मर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे। रामायण के अनुसार रावण के साथ युद्ध करते हुए जब राम थक जाते हैं और हताश होकर बैठ गए थे तब ब्रह्मर्षि अगस्त्य ने ही उनका हौसला बढ़ाया था।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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