Ganesh Chaturthi 2022 Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Mantra: हिंदू धर्म में बप्पा को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है। इन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी पुकारा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बप्पा के खुश रहने पर व्यक्ति के ऊपर आई सारी परेशानियां हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। इस बार गणेश चतुर्थी महोत्सव भारत में 31 अगस्त को मनाया जा रहा है। मान्यता है, कि इसी दिन भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस बार यदि आप बप्पा को घर लाने की सोच रहे हैं, तो आपको गणेश चतुर्थी की तिथि, पूजा विधि, समय, शुभ मुहूर्त कथा और मंत्र जरूर जान लेना चाहिए।
Ganesh Chaturthi 2022 Puja Muhurat, Mantra, Aarti, Puja Vidhi LIVE: Check here
गणेश चतुर्थी महोत्सव भारत में 31 अगस्त को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था।
पंचांग के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि की शुरुआत 30 अगस्त 2022 को दोपहर 03 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर 31 अगस्त 2022 को दोपहर 03 बजकर 23 मिनट पर खत्म हो जाएगा। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री गणेश का जन्म स्वाति नक्षत्र में मध्य काल में हुआ था, इसी वजह से 31 अगस्त को भगवान श्री गणेश की पूजा करना शुभ और लाभकारी होगा।
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गणेश मनोकामना पूर्ति मंत्र
ॐ गं गणपतये नमः
ग्रह दोष निवारण गणेश मंत्र
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।
बिगड़े कार्यों को सफल बनाने का मंत्र
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।
गणेश जी को प्रसन्न करने का मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
गणेश गायत्री मंत्र
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात्।
गणपति षडाक्षर मंत्र: आर्थिक तरक्की के लिए
ओम वक्रतुंडाय हुम्
सुख समृद्धि के लिए गणेश मंत्र
ऊं हस्ति पिशाचिनी लिखे स्वाहा
यदि आप घर में ही भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करके उनकी पूजा करना चाहते हैं, तो आप मूर्ति खरीदते समय ध्यान रखें की मूर्ति खंडित नहीं होनी चाहिए। भगवान के हाथों में अंकुश, पास, लड्डू, सूंड, धुमावदार और हाथ वरदान देने की मुद्रा में होनी चाहिए। भगवान श्री गणेश के शरीर पर जनेऊ और उनका वाहन चूहा जरूर होना चाहिए। ऐसी प्रतिमा की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
गणेश चतुर्थी के दिन सबसे पहले आप सूर्य उदय होने से पहले नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। अब पूजा का संकल्प लेते हुए भगवान श्री गणेश का स्मरण करते हुए अपने कुलदेवता का मनन करें। अब पूजा स्थल के स्थान पर पूर्व की दिशा में मुंह करके आसन पर बैठ जाए। अब एक चौकी पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर एक थाली में चंदन, कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। थाली पर बने स्वास्तिक के निशान के ऊपर भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करते हुए पूजा शुरू करें। पूजा करने के बाद इस मंत्र का जाप करें। गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
भगवान श्री गणेश का आवाहन करते हुए चौकी पर रखें प्रतिमा के सामने ऊं गं गणपतये नम: का मंत्र का जाप करते हुए जल डालें। अब गणेश जी को हल्दी, चावल, चंदन, गुलाब, सिंदूर, मौली, दूर्वा,जनेऊ, मिठाई, मोदक, फल, माला और फूल अर्पित करें। अब भगवान श्री गणेश के साथ-साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा करें। पूजा में धूप दीप करते हुए सभी की आरती करें। आरती करने के बाद 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। जिसमें से 5 लड्डू भगवान श्री गणेश की मूर्ति के पास रखें। बाकी लड्डू को ब्राह्मण और अन्य लोगों को प्रसाद के रूप में दें वितरण कर दें। पूजा के अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें। पूजा करने के बाद इस मंत्र का जाप जरूर करें।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। माता पार्वती ने वहां भगवान शिव से चौपड़ खेलने को कहा। भगवान शिव भी इस खेल को खेलने के लिए तैयार हो गए। लेकिन इस खेल में होने वाले हार-जीत का निर्णय कौन लेगा यह समझ नहीं आ रहा था, इसलिए भगवान शिव ने कुछ तीनके को इकट्ठा करके एक पुतला बनाया और उसमें जान डाल दी। जान डालते ही वह पुतला एक बालक बन गया। उसी बालक को इस खेल का निर्णय लेना था।
अब भगवान शिव और माता पार्वती चौपड़ का खेल शुरू कर दिए। तीन बार चौपड़ का खेल खेला गया। हर बार माता पार्वती जीती, लेकिन भगवान शिव द्वारा निर्मित उस बालक ने भगवान शिव को ही विजय बताया। इस बात को सुनकर माता पार्वती बेहद क्रोधित हो गई और उन्होनें क्रोध में आकर उस बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से बहुत माफी मांगी। बालक के बार-बार क्षमा मांगने पर माता पार्वती ने उस बालक से कहा, कि यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्या आएंगी उनके कहें अनुसार तुम भगवान श्री गणेश का व्रत पूरी श्रद्धा पूर्वक रखना। इस व्रत के प्रभाव से तुम इस श्राप से मुक्त हो जाओगें।
एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्या आई। तब उस बालक ने नागकन्याओं से गणपति बप्पा के व्रत का विधि-विधान पूछा। उनके बताए अनुसार उस बालक ने 21 चतुर्थी तक बप्पा का व्रत किया। बालक की भक्ति को देखकर गणपति बप्पा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस बालक को मनोवांछित वर मांगने को कहा। तब उस बालक नें सिद्धिविनायक से कहां 'हे प्रभु' मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर जा सकूं। तब बप्पा ने तथास्तु कहा।
भगवान श्री गणेश के तथास्तु कहने के बाद वह बालक अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पहुंचा। वहां उसने भगवान शिव को अपने ठीक होने की पूरी बात बताई। बालक की बात सुनकर भगवान शिव ने भी माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए 21 चतुर्थी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से माता पार्वती भी प्रसन्न हो गई। इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को इस व्रत की पूरी महिमा बताई। इस बात को सुनकर माता पार्वती की मन में अपने बड़े पुत्र कार्तिक से मिलने की प्रबल इच्छा जाग उठी।
तब माता पार्वती ने भी 21 चतुर्थी का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से भगवान कार्तिकेय माता पार्वती से मिलने स्वयं आ गए। तभी से यह व्रत संसार में विख्यात हो गया और इसे हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला व्रत माना जाने लगा। ऐसा कहा जाता है, कि यदि कोई व्यक्ति 21 चतुर्थी का व्रत पूरी श्रद्धा पूर्वक करें, तो बप्पा उसकी हर मनोकामना अवश्य पूर्ण कर देते हैं।
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