Geeta Gyan In Lock down Part 12: ईश्वर को पाने के लिए सांसारिक वस्तुओं का मोह त्याग कर उनके चिंतन में मन को लगाना चाहिए, उनकी भक्ति में रम जाने का ये एक सहज, सरल व सुगम मार्ग है जिससे इंसान उस परमपिता परमात्मा को पाकर सभी चिंताओं से मुक्त हो जाता है। आइए जानते हैं कि गीता के अनुसार क्या करना चाहिए।
मन्मना भव मद्धक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्तवैवमात्मान्नं मत्परायणः।।
गीता: अध्याय 09 श्लोक 34
भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! मुझमें अपने मन को लगाओ, मेरे भक्त बनो, मेरी ही पूजा करो व प्रणाम करो। इस प्रकार अपनी आत्मा को मेरी भक्ति में अनुरक्त करके तुम मुझको ही प्राप्त करोगे।
दार्शनिक व आध्यात्मिक व्याख्या- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अपने मन को सांसारिक चीजों से विरक्त कर हमारी भक्ति में मन लगाओ। यहां परमपिता परमेश्वर स्वयं भक्त बनने का आग्रह कर रहे हैं। इसमें लाभ किसका है? जीवात्मा का। यहां प्रभु कहते हैं मुझमें मन को लगाओ। जब मन लगाएंगे तभी भक्ति आएगी। अब यहां एक प्रश्न ये भी उठता है कि भगवान बार बार भक्त से अपनी ही पूजा करने को क्यों कहते हैं। ईश्वर अंश जीव अविनाशी। हम सब ईश्वर के अंश हैं। भगवान हमारे पिता हैं। परमात्मा हमारे उद्धारकर्ता हैं। कृष्ण यहां परम् ब्रम्ह हैं। वह नित्य मन को भागवत चिंतन में लगाने की बात कर रहे हैं। मन की एकाग्रता एकाएक नहीं आती है वरन उसके लिए भक्त को निरंतर अभ्यास करना पड़ता है। भगवान को नमस्कार करें। सकाम कर्म से मुक्त शुद्ध भक्ति की बात इसके पहले अष्टम अध्याय में ही भगवान ने कह दी है। गीता भक्ति पथ दिखाती है। गीता कर्मयोग सिखाती है। जैसे हम किसी वृक्ष के तनों व पत्तियों को सीचें तो कोई लाभ है क्या? बिल्कुल नहीं। जब हम वृक्ष के जड़ में जल अर्पित करेंगे तो सब अंगों को जल मिल जाएगा व पूरा वृक्ष हरा भरा हो जाएगा। वैसे ही एक मात्र भगवान की ही पूजा करने से हम सभी देवी देवताओं की पूजा स्वतः कर लेते हैं। यह भक्ति का सबसे सहज,सरल व सुगम मार्ग है कि कृष्ण की भक्ति करें। कृष्ण का पूजन करें व उनको प्रणाम करें। अंत में एक ऐसी अवस्था आएगी कि आप उस भक्ति में पूर्णतया तल्लीन होकर कृष्ण को प्राप्त कर लेंगे।
वर्तमान समय में इस श्लोक की प्रासंगिकता- भय के वातावरण में मन को सभी चीजों से हटाकर भगवान में ध्यान लगाएं। भगवान को प्रणाम करें। भगवान में मन को लीन करने से मन मस्त होकर व चिंताओं से मुक्त होकर किसी भी प्रकार की अनहोनी से मुक्त होकर सदैव कृष्ण का ही चिंतन, मनन व कीर्तन करेगा। आप कृष्णमय रहेंगे तथा कृष्ण की भक्ति को प्राप्त कर धन्य हो जाएंगे।
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