भारतीय सभ्यता में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा स्थान माना जाता है। भारत की धरती ने कई महाज्ञानी गुरुओं को जन्म दिया है जिन्होंने अपने ज्ञान से भगवान राम, करण और अर्जुन जैसे मानक मनुष्य सभ्यता को दिए हैं। जब भी गुरु की बात आती है तब महर्षि विश्वामित्र, गुरु द्रोणाचार्य, गुरु परशुराम जैसे कई गुरुओं को याद किया जाता है। इन्हें गुरुओं में सिख धर्म के पहले गुरु गुरु नानक देव जी भी हैं, जिन्हें संपूर्ण सिख सभ्यता में बहुत माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में गुरु की महिमा के साथ आपस में प्रेम और सम्मान की भावनाओं को बरकरार रखने पर जोर दिया है।
इस साल गुरु नानक देव जयंती 30 नवंबर को पड़ रही है, इस शुभ अवसर पर आज हम आपके लिए गुरु नानक देव जी से संबंधित जरूरी बातें और उनकी अहम शिक्षाओं को लेकर आए हैं।
गुरु नानक देव जी का जन्म (Guru Nanak ji ki jivni)
15 अप्रैल 1469 के दिन पाकिस्तान के लोहार प्रांत के तलवंडी के पास एक हिंदू परिवार में गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। आज इस जगह को ननकाना साहब के नाम से जाना जाता है। हर साल गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रकाश दिवस के तौर पर मनाया जाता है। यह कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी के पिता का नाम कालू था और उनकी मां का नाम तृप्ता था।
जनेऊ पहनने से किया था इनकार
कई अध्यात्मिक किताबों में यह कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी बचपन से ही आध्यात्मिक जीवन से प्रभावित थे और इसका कई संकेत मिलता है। गुरु नानक देव जी के बचपन की एक कहानी बहुत लोकप्रिय है, यह कहा जाता है कि उपनयन संस्कार के दौरान उन्होंने एक हिंदू आचार्य द्वारा जनेऊ पहनने से मना कर दिया था।
अध्यात्म जीवन से था लगाव
जब गुरु नानक देव जी 16 वर्ष के थे तब उनका सुखमणि नाम की एक कन्या से विवाह हो गया था जिनसे उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मीचंद है। विवाह होने के पश्चात भी गुरु नानक देव जी का मन अध्यात्म की तरफ ज्यादा रहता था। सांसारिक सुख में उनकी रुचि बहुत कम थी।
अपने पिता को दिया था सच्चे व्यापार का ज्ञान
उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से यह एक कहानी बहुत सुनाई जाती है जब उन्होंने अपने पिता को सच्चे व्यापार का ज्ञान दिया था। गुरु नानक देव जी के पिता उन्हें कृषि कार्य और व्यापार से संबंधित कार्यों में लगाना चाहते थे लेकिन गुरु नानक देव जी इसके विपरीत थे। घोड़े के व्यापार से उन्हें जो पैसे मिले थे उसको उन्होंने साधु सेवा में लगा दिया था, इससे उनके पिता नाराज हुए तब उन्होंने अपने पिता से कहा था कि यही सच्चा व्यापार है।
ऐसे हुई धर्म का प्रचार करने की शुरुआत
कहा जाता है कि एक दिन सुबह जल्दी उठ कर वह बेई नदी में स्नान करके आ रहे थे, तब उनकी परमात्मा से मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के दौरान भगवान ने उन्हें अमृत पिलाया था और विचरण करने के लिए कहा था। भगवान की बात मानकर गुरु नानक देव जी ने अपने परिवार की जिम्मेदारी को ससुर मूला को सौंप दिया और वह अपने धर्म का प्रचार करने के लिए निकल गए।
लंगर प्रथा की शुरुआत
आध्यात्मिक जीवन को अपनाने के लिए गुरु नानक देव जी ने सभी आदर्शों को अपनाया और वह लोगों को उपदेश देने लगे। इसी कड़ी में उन्होंने लंगर की परंपरा शुरू की जहां अछूत लोग ऊंची जाति के लोगों के साथ बैठकर खाना खाते थे। गुरु नानक देव जी लोगों को भाईचारे और सद्भावना के पाठ पढ़ाया करते थे। उनके द्वारा शुरू की गई लंगर की परंपरा को आज हर एक गुरुद्वारों में कायम रखा जाता है।
जातिगत भेदभाव से दूर भाईचारे की नींव रखी
गुरु नानक देव जी हमेशा सभी प्राणियों को एक समान मानते थे, लोगों के अंदर से एक दूसरे के प्रति भेदभाव को खत्म करने के लिए उन्होंने संगत परंपरा की शुरुआत की। इस परंपरा के अनुसार एक जाति के लोग एकत्रित होते थे और भगवान की अराधना करते थे। अपनी यात्राओं के समय गुरु नानक देव जी ने हर एक इंसान के निमंत्रण को स्वीकारा और उनके द्वारा परोसे गए भोजन को प्रेम के साथ अपनाया। उस समय जिन लोगों को नीची जाति का माना जाता था गुरु नानक देव जी इन सभी लोगों को अपना अभिन्न अंग मानते थे और उन्हें भाई कहकर बुलाया करते थे। इस तरह उन्होंने लोगों के दिलों में भाईचारे की नींव को रखी और सद्भावना का पाठ पढ़ाया।
गुरु नानक देव जी की अस्थियां बन गई थीं फूल
25 सितंबर 1539 के दिन गुरु नानक जी का निधन हो गया था। अपने जीवन काल में उन्होंने देश विदेश की यात्रा की थी और सभी लोगों को अपने अनमोल वचनों से आकर्षित किया था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह पाकिस्तान के करतारपुर आकर रहने लगे थे जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांसे गिनी थीं। यह कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी की अस्थियां फूल बन गई थीं जिनका हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने प्रथाओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया था।
उनकी सिखाई बातें आज भी उतनी ही मान्य हैं और हर मनुष्य का मार्गदर्शन करती हैं।
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