Kashi Vishwanath Temple History: धुंधली सी छवि और रहस्यमयी सी सुबह आंखो को भा जाने वाली और अंतर्आत्मा को छू लेने वाली काशी, भारत के सबसे प्राचीन और आध्यात्मिक शहरों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योर्तिलिंगों में नौवां स्थान रखता है। स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार यह स्थान भगवान शिव और माता पार्वती का आदिस्थान है। इसलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है, इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।
कहा जाता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका है। गंगा वरुणा और अस्सी घाट के मिलन होने से भगवान शिव (bhagwan shiv) के इस पावन नगरी का निर्माण हुआ। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यहां करीबन 30 करोड़ देवी देवताओं का वास है। ऐसे तो इस शहर में अनेको मंदिर, घाट और पर्यटन स्थल हैं लेकिन काशी विश्वनाथ मंदिर (kashi vishwanath mandir) का एक अलग ही महत्व है। ऐसे में इस लेख के माध्यम से आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास।
इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। वहीं 1194 ईस्वी में इस भव्य मंदिर (kashi vishwanath mandir history) को मुहम्मद गौरी ने तुड़वा दिया था। इल्तुतमिश के शासन काल में इसे दोबारा बनाया गया था, लेकिन एक बार फिर 1447 ईस्वी में जौनपुर के सुल्तान महमूद गौरी द्वारा तोड़ दिया गया। इसके बाद मुगल शासक अकबर के शासनकाल में इसे फिर से राजा मान सिंह द्वारा बनाए जाने का उल्लेख मिलता है। 1585 में अकबर के शासनकाल में ही राजा टोडरमल द्वारा पंडित नारायण भट्ट की सहायता से मंदिर का पुनरोद्धार कराया गया।
कुछ दशकों बाद औरंगजेब ने फरमान जारी कर मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। तमाम उठापटक और प्रतिरोध के बाद मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया।
kashi vishwanath mandir ithihas
गंगा नदी के तट पर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर (kashi vishwanath Temple) को लेकर एक पौराणिक कथा मौजूद है। स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार श्रीहरि भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच इस बात को लेकर बहस हो गई कि कौन अधिक शक्तिशाली है। धीरे धीरे यह विवाद इतना बढ़ता गया कि भगवान शिव को मध्यस्थता करना पड़ा और उन्होंने एक विशाल ज्योर्तिलिंग का रूप धारण कर लिया।
इसके बाद उन्होंने ब्रह्मा जी और विष्णु जी से इसके स्रोत और ऊंचाई का पता लगाने के लिए कहा। इसे सुन ब्रह्मा जी अपने हंस पर सवार होकर इसके अंत का पता लगाने के लिए चल पड़े। वहीं दूसरी ओर श्रीहरि भगवान विष्णु गरुण पर सवार होकर ज्योर्तिलिंग के स्रोत का पता लगाने के लिए निकल पड़े। कहा जाता है कि कई युगों तक दोनों ज्योर्तिलिंग के स्रोत और अंत का पता लगाने की कोशिश करते रहे। अंत में विष्णु जी हार मानकर भगवान शिव के इस रूप के सामने नतमस्तक हो गए। वहीं दूसरी ओर ब्रह्मा जी ने अपनी हार को स्वीकार नहीं किया और झूठ बोल देते हैं कि उन्होंने इस स्तंभ के अंत का पता लगा लिया है।
इसे सुन भोलेनाथ क्रोधित हो जाते हैं और ब्रह्मा जी को श्राप देते हैं कि उनकी कभी पूजा नहीं होगी। कहा जाता है कि इस स्तंभ से पृथ्वी के भीतर जहां भी भगवान शिव का दिव्य प्रकाश निकला था, वो 12 ज्योर्तिलिंग कहलाया। काशी विश्वनाथ मंदिर भी इन्हीं ज्योर्तिलिंगो में से एक है।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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