यदि किसी पितरों का श्राद्ध करना भूल गए हैं तो इस दिन कर सकते हैं 

आध्यात्म
Updated Sep 08, 2017 | 10:46 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए. इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं. जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर  |  तस्वीर साभार: Indiatimes

नई दिल्ली: हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए. इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं. जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।

इस साल श्राद्ध 5 सितंबर से शुरू हो रहे हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तारीख को उनका श्राद्ध करना चाहिए. कहा जाता है कि इन दिनों पितृों का ध्यान करना चाहिए और उन्हें खुश करने के लिए उनका श्राद्ध जरूर करना चाहिए।

आपको बता रहे हैं ऐसी तिथियों के बारे में जिन पर आप पितृों का श्राद्ध कर सकते हैं। 

अगर किसी वजह से अपने पितरों का श्राद्ध करने से भूल गए हों या फिर आपको पितृों के गमन की तारीख नहीं पता हो तो आप सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि  इस दिन सभी भूले बिसरे पिृतों का श्राद्ध भी किया जाता है।

पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें. जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।

श्राद्ध कर्म करने वालों के लिए एक खास मंत्र--

श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए. यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है-

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत
 

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