Sandhi Puja in Navratri: संधि पूजा कब है? जानें शुभ मुहूर्त के साथ इसका महत्व, पूजा विधि और कथा

Sandhi Puja 2020 Date And Time : शारदीय नवरात्र की अष्टमी और नवमी तिथि के मध्य में संधि पूजा की जाती है। जानें, इस दिन किन सब्जियों की बलि देनी चाहिए और क्या है संधि पूजा का महत्व, पूजा विधि और कथा।

Sandhi Puja Importance, नवरात्रि में संधि पूजा का महत्व
Sandhi Puja Importance, नवरात्रि में संधि पूजा का महत्व 
मुख्य बातें
  • संधि पूजा अष्टमी के अंत और नवमी की शुरुआत में की होती है
  • दो तिथियों के बीच के शुभ समय पर ही करनी चाहिए पूजा
  • इस दिन देवी को कद्दू और ककड़ी की बलि देना बहुत शुभ माना गया है

संधि पूजा का अष्टमी और नवमी को बहुत महत्व रखता है। प्राचीन काल से चली आ रही इस पंरपरा को आज भी उतनी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ देवी के भक्त निभाते हैं। इस दिन देवी को सब्जियों की बलि देनी चाहिए। मान्यता है कि सब्जियों की बलि से देवी की कृपा संपूर्ण परिवार पर बनी रहती है। संधि पूजा अष्टमी के खत्म होने और नवमी के लगने के बाद के काल तक की जाती है। इस दिन पारंपरिक वस्त्रों में और पारंपरिक विधि से देवी की पूजा का विधान होता है। तो आइए जानें, संधि पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा की विधि और कथा के बारे में।

संधि पूजा शुभ मुहूर्त (Sandhi Puja 2020 Shubh Muhurat)

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सुबह 6 बजकर 57 मिनट से (23 अक्टूबर 2020) अगले दिन सुबह 6 बजकर 58 मिनट तक (24 अक्टूबर 2020)

संधि पूजा का महत्व (Sandhi Puja Ka Mahatva)

शारदीय नवरात्रि में संधि पूजा अष्टमी और नवमी तिथि पर शाम के समय होती है दो तिथि के मिलन के कारण इसे संधि पूजा के नाम से जाना जाता है। संधि पूजा को अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट  बाद तक किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार जिस समय मां चामुण्डा और महिषासुर के बीच में भयंकर युद्ध हो रहा था। उस समय चण्ड और मुंड नाम के दो राक्षसों ने माता चामुण्डा की पीठ पर वार कर दिया था, इसके बाद माता का मुख क्रोध के कारण नीला पड़ गया और माता ने दोनों राक्षस का वध कर दिया था। जिस समय उनका वध हुआ संधि काल का ही था। इस मुहूर्त को बहुत ही शक्तिशाली माना गया है।

संधि पूजा की विधि (Sandhi Puja Ki Vidhi)

शुभ समय संधि पूजा शुरू करनी चाहिए और  देवी दुर्गा को 108 दीपक और 108 कमल के फूल चढ़ाने चाहिए। साथ ही 108 बेलपत्र भी चढ़ाएं। इसके बाद मां दुर्गा को लाल वस्त्र,  लाल फल,  पुष्प, चावल और मेवा अर्पित करें और गहने आदि पहना कर उनका पूरा श्रृंगार करें। धूप-दीप के साथ देवी मंत्र के जाप के बाद आरती करें। पंडालों में ढोल-नगाड़ों के साथ संधि पूजा का शुभारंग घंटी बजाकर किया जाता है।

संधि पूजा सब्जी बलि (Sandhi Puja vegetable sacrifice)

इस दिन मां दुर्गा कई जगह पशु बलि दी जाती हैं, लेकिन इस दिन सब्जियों की बलि का खास महत्व होता है। खास कर इस दिन कददू और ककड़ी की बलि देना बहुत शुभकर माना गया है।

संधि पूजा की कथा (Sandhi Puja Ki Katha)

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी, महिषासुर के साथ युद्ध कर रही थीं तब चंड और मुंड ने देवी पर पीछे से वार कर दिया इससे देवी का क्रोध ताप बढ़ गया और उनकी शक्ति भी। क्रोध के कारण उनका पूरा शरीर नीला पड़ गया। इसके बाद मां दुर्गा ने तीसरी आंख खोली और मां दुर्गा का स्वरूप चामुंडा देवी में बदल गया। इसके बाद मां ने चंड और मुंड का वध कर दिया। मां दुर्गा के चामुंडा रूप लेने के सम्मान में ही संधि पूजा की जाती है। संधि पूजा को बंगाल में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन लोग पारंपरिक वेश भूषा धारण करते हैं। इस दिन मां दुर्गा को 108 दीपक, 108 कमल, 108 बेल के पत्ते, गहने, पारंपरिक कपड़े, हिबिस्कस फूल, चावल , अनाज, एक लाल फल और माला अर्पित की जाती है। संधि पूजा में मंत्रोच्चारण को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन मां की पूजा ढोल, नगाड़ों के साथ की जाती है।

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