इंदिरा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही इस व्रत को करने से उसका ही नहीं, उसके पितरों का भी उद्धार होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य का परलोक सुधरता है और यदि उनके पितरों के कोई ऐसे कर्म रहे हों, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति न पा रही हो, तो वह भी संभव होता है। इस व्रत को करने से पितरों के पापकर्म कट जाते हैं और वे पितृलोक में पा रहे कष्टों से भी मुक्त हो जाते हैं। इसलिए इस दिन व्रत और पूजन के साथ विष्णुसहस्रनाम का पाठ भी करना चाहिए। इसे मनुष्य को दोनों ही लोक में सुख की प्राप्ति होती है।
इंदिरा एकादशी के दिन इस विधि से करें पूजा
सुबह स्नान-ध्यान करने के बाद भगवान विष्णु का स्मरण कर व्रत और पूजन का संकल्प करें। इसके बाद शालिग्राम भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं और उनकी प्रतिमा को आसन पर विराजित करें। अब भगवान के सामने धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें और चंदन का टिका कर पुष्प अर्पित करें। इसके बाद प्रभु को प्रसाद चढ़ाएं और जल से आचमन कराएं। वहीं बैठकर आप विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराएं और उन्हें दक्षिणा दें। इसके बाद जरूरतमंदों को दान भी करें। व्रतीजन को इस दिन एक बार ही भोजन करना चाहिए। संभव हो तो रात्रि जागरण करें। अगले दिन यानी द्वादशी के दिन पारण करने से पूर्व पूजा-पाठ कर गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न दान करें।
जानें, क्या है इंदिरा एकादशी की व्रत कथा
महिष्मति नगर के राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु का परम भक्त थे। एक दिन राजा की सभा में महर्षि नारद उपस्थित हुए और उन्होंने राजा से कहा कि, आप सकुशल हैं और सुख पूर्वक जीवन जी रहे हैं, लेकिन आपके पिता यमलोक में यमराज के निकट सो रहे हैं। उन्होंने मुझे एक संदेश लेकर आपके पास भेजा है। यह सुनकर राजा व्याकुल हो गए और उन्होंने मुनि से पूछा कि, कृप्या कर बताएं कि मेरे पिता ने क्या संदेश भेजा है। नारद मुनि ने कहा कि आपके पिता ने आपको एकादशी का व्रत करने को कहना है। तब राजा ने मुनि से इस व्रत की विधि के बारे में पूछा।
नारद मुनि ने बताया कि इंदिरा एकादशी से एक दिन पूर्व दशमी पर आप नदी में स्नान कर पितरों का श्राद्ध करें और एकादशी को फलाहार कर भगवान की पूजा करें। नारद मुनि ने बताया कि इस व्रत से आपके पिता को ही नहीं आपको भी बहुत पुण्यलाभ मिलेगा। इसके बाद राजा ने अपने भाइयों और दासों के साथ इंदिरा एकादशी व्रत किया और इससे उनके पिता यमलोक से गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक पर चले गए। इतना ही नहीं जब राजा इंद्रसेन की मृत्यु हुई तो वह भी अपने एकादशी व्रत के पुण्यलाभ से स्वर्गलोक की प्राप्ति किए।
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