Astrology Tips for Child: संतान की प्राप्ति दांपत्य जीवन का पहला सुख होता है। माता-पिता बनने के बाद पति-पत्नी का जीवन खुशहाली से भर जाता है। कहा जाता है कि मां बनने के बाद ही एक औरत पूर्ण होती है। वहीं छोटे बच्चों की किलकारी से घर और परिवार के अन्य लोगों में भी उत्साह आ जाता है। घर के बड़े-बुजुर्ग तो बच्चे के साथ एक बार फिर से बच्चे बन जाते हैं। ऐसा कोई दंपत्ति नहीं है जो संतान की ख्वाहिश ना रखता हो। लेकिन क्या करें जब तमाम कोशिशों के बाद भी संतान सुख की प्राप्ति ना हो रही हो। ज्योतिष के अनुसार पति-पत्नी के कुंडली में ग्रह दोषों के अशुभ प्रभावों के कारण भी संतान प्राप्ति में अड़चने आती है। कुंडली में संतान सुख की प्राप्ति के लिए दो ग्रहों की बड़ी भूमिका होती है।
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इस कारण आती है संतान प्राप्ति में बाधा
ज्योतिष के अनुसार, पत्नी की कुंडली में पांचवा भाग संतान सुख का होता है और बृहस्पति ग्रह संतान प्राप्ति का कारक होता है। यदि बृहस्पति के पंचम भाव का स्वामी छठे स्थान, आठवें या बारहवें भाव में हो या फिर पंचम, सप्तम और नवम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है।
इन योगों से संतान पक्ष में आती है बाधाएं
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संतान प्राप्ति के लिए उपाय
सूर्य और शनि की दुर्बलता भी संतान सुख में बाधा उत्पन्न करती है। निसंतान दंपत्ति अगर संतान सुख की चाह रखते हैं तो उन्हें कुंडली में सूर्य और बृहस्पति की स्थिति सही करनी होगी। इसके अलावा ग्रह दोषों से जुड़े इन उपायों को करने से संतान की प्राप्ति हो सकती है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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