हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, बसंत पंचमी हंसवाहिनी को समर्पित है लेकिन इस दिन कामदेव और उनकी प्रिय पत्नी देवी रति की पूजा भी की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन कामदेव और देवी रति की पूजा करने से पति-पत्नी के प्यार में वृद्धि होती है और दोनों का रिश्ता मजबूत होता है। मान्यताओं के अनुसार कामदेव प्राणियों के अंदर प्रेम भावना जागृत करते हैं वहीं देवी रति श्रृंगार करने की इच्छा को बढ़ाती हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, कामदेव के धनुष से निकला बाण सीधा दिल पर लगता है। इस बाण के लगने से दिल प्रेम की भावना से भर जाता है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने के बाद ही कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा करनी चाहिए।
यहां जानिए कौन है कामदेव और कैसे करें उनकी और उनकी पत्नी की पूजा?
कौन हैं कामदेव?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि कामदेव ऋतुराज वसंत के मित्र हैं। बसंत पंचमी की शुभ तिथि पर कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ पृथ्वी पर आते हैं। इन कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है कि कामदेव और देवी रति पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणियों के अंदर प्रेम और श्रृंगार को जागृत करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, कामदेव को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पुत्र कहा गया है। कामदेव को भगवान ब्रह्मा का पुत्र भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव महिलाओं की आंखों, खूबसूरती, मधुर आवाज, महिलाओं के यौवन, फूलों के रस, मनोहर जगह, मानव शरीर के छुपे हुए अंग आदि में वास करते हैं।
बसंत पंचमी पर कैसे करें कामदेव और रति की पूजा?
पुराणों के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने के बाद कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा करनी चाहिए। कामदेव और देवी रति की पूजा करने के लिए सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी रखिए और उस पर पीले रंग का वस्त्र बिछा लीजिए। अब वस्त्र पर अक्षत का कमल दल बनाइए फिर चौकी के आगे वाले भाग में हल्दी से गणेश जी और पीछे वाले भाग में चंदन की मदद से कामदेव और उनकी पत्नी देवी रति की स्थापना कीजिए।
कामदेव और देवी रति की पूजा करने से पहले भगवान गणेश की पूजा कीजिए फिर कामदेव और देवी रति की पूजा कीजिए। पूजा करने के बाद इन दोनों के ऊपर अबीर और फूल डालिए। पूजा करने के बाद 108 बार कामदेव मंत्र का जाप कीजिए। बसंत पंचमी के दिन पति और पत्नी को ब्रह्माचार्य का पालन जरूर करना चाहिए इससे अत्यधिक लाभ मिलता है।
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