इंद्र देवलोक के राजा का नाम नहीं बल्कि पदवी है, हर मन्वंतर में नियुक्त होता है नया इंद्र

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि ‘इंद्र’, देवताओं के राजा का नाम नहीं है, बल्कि देवलोक के राजा की पदवी/उपाधि का नाम है! पुस्‍तक 'इंद्र : देवलोक के वर्तमान राजा पुरंदर की गाथा' इंद्र को समझने के लिए चर्चित है।

Indra- Devlok ke Vartman Raja
Indra- Devlok ke Vartman Raja 
मुख्य बातें
  • लोग यह भी नहीं जानते कि हर मन्वंतर में नया इंद्र नियुक्त होता है।
  • वर्तमान समय के इंद्र का नाम पुरंदर है। वह महर्षि कश्यप के पुत्र हैं।
  • महर्षि कश्यप और अदिति के बारह पुत्रों में से एक है पुरंदर।

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि ‘इंद्र’, देवताओं के राजा का नाम नहीं है, बल्कि देवलोक के राजा की पदवी/उपाधि का नाम है! लोग यह भी नहीं जानते कि हर मन्वंतर में नया इंद्र नियुक्त होता है। वर्तमान समय के इंद्र का नाम पुरंदर है। इंद्र, देवराज होने के अलावा वह दस दिशाओं में से एक पूर्व दिशा का संरक्षक यानी ‘दिक्पाल भी है। यह दुख की बात है कि इंद्र के असीम बल, जबरदस्त युद्ध-कौशल तथा उसकी उपलब्धियों के बावजूद, देवराज इंद्र को धूर्त, कामी, घमंडी और कपटी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में ऐसे अनेक किस्से हैं जहाँ इंद्र को भय, असुरक्षा एवं द्वेष की भावना से ग्रस्त दर्शाया गया है। उसने खुले आम नैतिकता के स्थापित नियमों का उल्लंघन और सामाजिक व्यवस्था के ढांचे को छिन्न-भिन्न किया है। इंद्र द्वारा ऋषियों की पत्नियों और अप्सराओं के साथ व्यभिचार की अनेक घटनाएं भी हमें ज्ञात हैं। 

मंजुल प्रकाशन से प्रकाशित जाने माने पौराणिक लेखक आशुतोष गर्ग की पुस्‍तक 'इंद्र : देवलोक के वर्तमान राजा पुरंदर की गाथा' इंद्र को समझने और जानने के लिए चर्चित है। पुस्‍तक में आशुतोष गर्ग में उल्‍लेख करते हैं कि अध्यात्म” शब्द को समझने में हमसे भूल हो जाती है। कई बार अध्यात्म को ध्यान, पूजा-पाठ, धर्म आदि से जोड़कर देखा जाता है लेकिन यह ठीक नहीं है। सही मायनों में ‘अध्यात्म’ का अर्थ नैतिक और सात्विक जीवन-शैली है। हिंदू पौराणिक साहित्य में कई ऐसे उदाहरण हैं जहां किसी ने तो मूलत: असुर होकर भी आध्यात्मिक उन्नति द्वारा श्रेष्ठ स्थान पा लिया जबकि देवता अनुचित कार्य कर बैठे। इनमें एक प्रमुख नाम है – इंद्र!

गुणवान भी थे इंद्र 
पुस्‍तक के अनुसार, ऐसा नहीं है कि इंद्र में गुणों का अभाव है। इंद्र वेदों में वर्णित समस्त देवताओं में सबसे लोकप्रिय है। ऋग्वेद में अधिकांश ऋचाएं, इंद्र की स्तुति में लिखी गई हैं! वह महर्षि कश्यप और दिति के बारह आदित्य पुत्रों में से एक है। उसने सौ अश्वमेध यज्ञ भी सम्पन्न किए हैं, जिसके कारण उसका अ एक नाम ‘शतक्रतु’ है। यह ‘इंद्र’ का सिंहासन पाने की एक ज़रूरी शर्त होती है। इसके आलवा, वह वर्षा, बिजली और बादलों का देवता है। उसने समय-समय पर अपने दधीचि की अस्थियों से निर्मित वज्र की मदद से क्रूर दैत्यों और राक्षसों का संहार करके संसार को उनके अत्याचार से मुक्ति भी दिलाई है। उसने कई बार, कष्ट में फंसे लोगों की सहायता करके उन पर उपकार किया है।

इंद्र अनेक दुर्लभ वस्तुओं का स्वामी है। इनमें मंदार, पारिजात, कल्पवृक्ष और हरिचंदन जैसे दिव्य वृक्ष शामिल हैं। उसके पास ऐरावत हथी और उच्चै:श्रवा जैसे दिव्य-रत्न हैं जो समुद्र-मंथन से प्राप्त हुए थे। इंद्र को उसकी शक्ति के लिए ‘शक्र’, पराक्रम के लिए ‘वृषण’, तथा वसुओं का स्वामी होने के कारण ‘वासव’ कहकर संबोधित किया जाता है। देवताओं ने इंद्र के नेतृत्व में, कई बार असुरों से भीषण युद्ध लड़े और जीते हैं। परंतु यह भी सत्य है कि आध्यात्मिकता से विमुख इंद्र ने क्रोध, आवेश और अहंकार के क्षणों में महर्षियों का अपमान किया और अपने एक गुरु विश्वरूप की हत्या तक कर डाली! इंद्र, स्वभाव से संशयी है और उसके स्वभाव का पूर्वानुमान लगा पाना असंभव है। 

देवलोक के वर्तमान शासक
चरित्र पर लगे कलंक एवं अन्य दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बावजूद, वर्तमान मनवन्तर का इंद्र – पुरंदर – निर्विवाद रूप से देवताओं का स्वामी और देवलोक का शासक है। आज भी वर्षा एवं बिजली के देवता के रूप में वंदित है। उसे वह सम्मान और विश्वास भी नहीं प्राप्त हुआ, जो देवलोक के राजा को मिलना चाहिए। फिर भी यही कहना होगा कि आध्यात्मिकता से मुंह मोड़े खड़े इंद्र की प्रभुता अविवादित है। वर्तमान काल के इंद्र का नाम पुरंदर है और वह महर्षि कश्यप और अदिति के बारह पुत्रों में से एक है। आशुतोष ने हर कथा में उसे पुरंदर के नाम से ही पुकारा है। वर्तमान काल का इंद्र देवलोक की राजधानी अमरावती में रहता है।

इंद्र के चरित्र की यही विशेषता है कि उसके बारे में अनंतकाल तक लिखा जा सकता है। उसके जीवन से जुड़ी समस्त घटनाएं, पौराणिक ग्रंथों में यत्र-तत्र बिखरी हुई हैं। उनमें से कुछ रोचक कहानियों को एक जगह पाठकों तक पहुँचाने के उद्देश्य से यह किताब “इंद्र” लिखी गई है। हर लेखक की यह ज़िम्मेदारी है कि वह पाठकों को पौराणिक पृष्ठभूमि की आड़ में भ्रमित न करे। इसलिए इस पुस्तक की सभी घटनाएं लगभग उसी रूप में प्रस्तुत की गई हैं जिस रूप में ये ग्रंथों में मूल रूप से उपलब्ध हैं। इस पुस्तक में लेखक ने विभिन्न कथाओं का ताने-बाना बुनकर पुरंदर के प्रभावशाली किंतु चंचल व्यक्तित्व को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।.

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