Kokila vrat katha 2021 Importance: आषाढ़ पूर्णिमा पर रखे जाने वाला कोकिला व्रत (Kokila vrat) देवी सती और शिव भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। कहा जाता है कि जो भक्त कोकिला व्रत रखते हैं तथा देवी सती और भगवान शिव की पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आषाढ़ पूर्णिमा पर रखे जाने वाला कोकिला व्रत पूरे सावन मास चलता है और इन दिनों विशेष अनुष्ठान करना मंगलमय कहा गया है। मान्यताओं के अनुसार जो महिलाएं इस दिन कोकिला व्रत रखती हैं उनका सुहाग हमेशा सलामत रहता है तथा उनका वैवाहिक जीवन सुखमय बीतता है।
कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह व्रत बेहद लाभदायक माना गया है। इस दिन महिलाएं मिट्टी से कोयल बनाकर उसकी पूजा करती हैं। कहा जाता है कि कोकिला देवी सती का रूप है और इसकी पूजा करना फलदायक है। कोकिला व्रत का फल कथा सुनने के पश्चात ही पूरा मिलता है इसीलिए इस दिन कथा का पाठ करें।
कोकिला व्रत कथा इन हिंंदी, कोकिला व्रत की पौराणिक कहानी, Kokila vrat katha in hindi
कहा जाता है कि अनंतकाल में राजा दक्ष रहते थे जिन्होंने एक बार अपने घर में यज्ञ आयोजित करवाया था। इस यज्ञ में राजा दक्ष ने सभी देवी देवताओं को बुलाया था मगर उन्होंने देवी सती और भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया था। जब देवी सती को इस यज्ञ का पता चला तो वह भी इस यज्ञ में शामिल होने के लिए भगवान शिव से आग्रह करने लगीं। भगवान शिव ने देवी सती को समझाया कि अगर राजा दक्ष ने हमें नहीं बुलाया है तो इसके पीछे जरूर कोई कारण होगा, इसलिए उन्हें यज्ञ में नहीं जाना चाहिए। देवी सती ने भगवान शिव की बात ना मानी और वह जिद करने लगीं।
देवी सती ने योगाग्नि में दे दी आहुति
देवी सती की जिद मानते हुए भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। जब देवी सती यज्ञ में पहुंची तब उन्होंने देखा कि कोई भी उनसे प्यार से बात नहीं कर रहा है। किसी ने भी उनका मान सम्मान नहीं किया जिससे देवी सती को बहुत बुरा लगा। भगवान शिव की बात ना मानकर देवी सती को बहुत पछतावा हुआ और कुंठित होने के चलते उन्होंने योगाग्नि में आहुति दे दी।
भगवान शिव ने दिया श्राप
जब भगवान शिव को देवी सती की आहुति का पता चला तब वह बेहद क्रोधित हुए। क्रोध में आकर उन्होंने देवी सती को उनकी इच्छाओं के विरुद्ध आहुति देने के लिए श्राप दिया। भगवान शिव का शाप था कि देवी सती को 10 हजार साल तक कोयल के रूप में वन में भटकना होगा। भगवान शिव के शाप के चलते देवी सती कालांतर में 10 हजार साल तक वन में भटकती रहीं और भगवान शिव की पूजा-आराधना करती रहीं। 10 हजार साल बाद देवी सती को पर्वतराज हिमालय की पुत्री का जन्म मिला था।
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