18 अगस्त यानी मंगलवार को कुशोत्पाटनी अमावस्या है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या या पिठोरी अमावस्या होती है। इस दिन कुश को उखाड़ कर रखने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन जो कुश उखाड़ा जाता है वह पूरे साल तक किसी भी धार्मिक कार्य में प्रयोग किया जा सकता है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं मानी जाती है। इसलिए इस दिन कुश को उखाड़ कर जरूर रख लेना चाहिए।
जानें, कुश का महत्व
कुश के बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। आपने गौर किया होगा कि किसी भी पूजा से पहले पुरोहित, यजमान की अनामिका उंगली में कुश को अंगूठी के रूप में जरूर पहनाते हैं। यदि कुश यजमान न पहने तो उसकी पूजा स्वीकार नहीं होती। शास्त्रों में 10 प्रकार के कुश के बारे में बताया गया है। कुशोत्पाटनी अमावस्या पर जो भी कुश आपको मिले आपको ले कर रख लेना चाहिए, ताकि धार्मिक अनुष्ठान में आप इसे प्रयोग कर सकें।
कुश उखाड़ने का जानें नियम
कुश कैसा होना चाहिए और रखने का नियम
कुश का अग्रभाग कटा या टूटा न हो। यह खंडित होगा तो पूजा के प्रयोग में नहीं आएगा। ये जला न हो और किसी गंदे स्थान से न लिया गया हो। कुश को उखाड़ने के बाद इसे पवित्र स्थान पर रखें। कुश का प्रयोग एक साल तक किया जा सकता है। यदि एक साल तक इसक प्रयोग न हो तो इसे कुशोत्पाटनी अमावस्या पर बहती नदी में प्रवाहित करें और नया कुश उखाड़ कर उसी विधि से रखें।
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