शुभ फलों और धन-धान्य से संपन्न होने का महापर्व लाभ पंचमी

आध्यात्म
Updated Oct 22, 2017 | 11:35 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इसे सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जानते है।

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नई द‍िल्‍ली. लाभ पंचमी को लाभ पाचम भी कहते हैं। लाभ पंचमी को भारतवर्ष में दीपावली के अंतिम पर्व के रूप में भी मनाया जाता है | कार्तिक शुक्ल पक्ष (24 अक्‍टूबर) पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इसे सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जानते है।

कार्तिक शुक्ल पंचमी, सौभाग्य पंचमी व लाभ पंचमी के रूप में भी मनाई जाती है। खासतौर पर गुजरात में यह शुभ तिथि दीप पर्व का ही हिस्सा है। दीपावली से गुजराती नववर्ष की शुरुआत के साथ ही लाभ पंचमी को कारोबार में तरक्की और शुरुआत के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है। दीप पर्व सुख-शांति और खुशहाल जीवन की ऐसी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर ऊर्जा और प्रेरणा लेने का शुभ अवसर होता है। इसलिए लाभ पंचमी पर दीपावली पर पूजा के बाद बहीखातों को लिखने की शुरुआत शुभ व लाभ की कामना के साथ भगवान गणेश का स्मरण कर की जाती है।

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सौभाग्य पंचमी जीवन में सुख और सौभाग्य की वृद्धि करती है इसलिए पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा सभी सांसारिक कामनाओं का पूरा कर परिवार में सुख-शांति लाती है तथा श्री गणेश पूजन समस्त विघ्नों का नाश कर काराबोर को समृद्ध और प्रगति‍ प्रदान करता है। जीवन में हर व्यक्ति कार्यक्षेत्र के साथ पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना रखता है। इसलिए यह सौभाग्य पंचमी पर्व सुख-शांति और खुशहाल जीवन की ऐसी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर ऊर्जा प्राप्त करने का शुभ अवसर होता है।

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सौभग्य पंचमी के शुभ अवसर पर विशेष मंत्र जाप द्वारा भगवान श्री गणेश का आवाहन करते हैं जिससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। कार्यक्षेत्र, नौकरी और कारोबार में समृद्धि की कामना की पूर्ति होती है। इस दिन गणेश के साथ भगवान शिव का स्मरण शुभफलदायी होता है। सुख-सौभाग्य और मंगल कामना को लेकर किया जाने वाला सौभगय पंचमी का व्रत सभी की इच्छाओं को पूर्ण करता है। इस दिन भगवान के दर्शन व पूजा कर व्रत कथा का श्रवण करते हैं।

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सौभाग्य पंचमी पूजन के दिन प्रात: काल स्नान इत्यादि से निवृत होकर सूर्य को जलाभिषेक करने की परंपरा है। फिर शुभ मुहूर्त में विग्रह में भगवान शिव व गणेश जी की प्रतिमाओं को स्थापित की जाती है। श्री गणेश जी को सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर विराजित किया जाता है। भगवान गणेश जी को चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से पूजना चाहिए तथा भगवान आशुतोष को भस्म, बिल्वपत्र, धतुरा, सफेद वस्त्र अर्पित कर पूजन किया जाता है और उसके बाद गणेश को मोदक व शिव को दूध के सफेद पकवानों का भोग लगाया जाता है।  

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