Lalita Shashti 2022: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ललिता षष्ठी का त्योहार मनाया जाता है। इसे उपांग ललिता व्रत भी कहा जाता है। इस दिन मां ललिता की पूजा का विधान बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार मां ललिता की दो भुजाएं होती हैं। वे गौर वर्ण और कमल पर विराजमान रहती हैं। इन्हें षोडशी, त्रिपुरा और सुंदरी नामों से भी संबोधित किया जाता है। इनकी पूजा-उपासना करने से मनचाहा वरदान और सिद्धियों की प्राप्ति की जा सकती है। इनकी पूज षष्ठी तिथि को स्नाादि के बाद की जाती है।
शास्त्रों के जानकार कहते हैं कि षष्ठी तिथि को मां ललिता के साथ स्कंद माता और भगवान शिव की भी पूजा की जाती है। इन्हें माता पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि ललिता षष्ठी का व्रत करने वालों के जीवन में कभी कोई समस्या नहीं रहती है। इनकी पूजा से दांपत्य जीवन खुशियों से भर सकता है। घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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ललिता षष्ठी की पूजन विधि
ललिता षष्ठी के दिन व्रत करने वाले लोग सूर्योदय से पूर्व स्नानादि के बाद के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके बाद मंदिर में जाकर उत्तर दिशा में मुख करके माता की पूजा करें। देवी की पूजा षोडषोपचार विधि से करना उत्तम माना जाता है। इनके सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें। इन्हें लाल रंगे के फूल अर्पित करें। फल और मिठाई का भोग लगाएं। अंत में इनकी आरती उतारें और इनसे मंगलकारी जीवन की कामना करें।
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ललिता षष्ठी के मंत्र
ललिता षष्ठी के दिन देवी ललिता के मंत्रों का उच्चारण करना भी बहुत शुभ माना जाता है। माता के प्रभावशाली मंत्रों का जाप कर आप जीवन में चल रही समस्याओं से निजात पा सकते हैं। आप रूद्राक्ष माला से दस माला जाप कर सकते हैं। मंत्र हैं-
1. 'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:। '
2. 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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