नई दिल्ली: ओडिशा के पुरी के इस जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) में भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ मौजूद भगवान कृष्ण से जुड़े कुछ रहस्य हैं। इससे जुड़ी एक कथा है जब भगवान श्रीविष्णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो यह उनका मानव रूप था और सृष्टि के नियम अनुसार इस रूप की मृत्यु भी तय थी, ऐसे में जब श्रीकृष्ण ने देहत्याग कर दिया लेकिन जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो श्रीकृष्ण का पूरा शरीर तो अग्नि को समर्पित हो गया लेकिन उनका हृदय था जो धड़क ही रहा था।
यह आज भी जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति में मौजूद है, भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है, कुछा सालों के अंतराल पर जब जगन्नाथजी की मूर्ति बदली जाती है, तो इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में रख दिया जाता है, बताते हैं कि ऐसा करते समय बहुत सावधानी रखी जाती है।
जिस समय ये भगवान जी का ये पवित्र कार्य होता है उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है. कोई भी मंदिर में नही जा सकता मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है, पुजारी की आंखों में पट्टी बंधी होती है पुजारी के हाथों में कपड़े लपेट दिए जाते हैं।
जब भी यह रस्म निभाई जाती है उस समय पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है इसके बाद मूर्ति बदलने वाले पुजारी भगवान के कलेवर को बदलते हैं। इस समय पुजारी की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथों में कपड़े लपेट दिए जाते हैं कहते हैं इस मूर्ति के नीचे आज भी श्रीकृष्ण का हृदय धड़कता है। भगवान कृष्ण का हृदय बदलते समय आंखों पर पट्टी, हाथ में दस्ताने और पूरे शहर की बिजली गुल करने के पीछे यह मान्यता है कि अगर किसी ने गलती से भी उसे देख लिया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी यही वजह है कि 'नव कलेवर' की रस्म निभाने से पहले पूरी सतर्कता बरती जाती है।
नवकलेवर (Navakalevara) अधिकांश जगन्नाथ मंदिरों से जुड़ा एक प्राचीन उत्सव है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की पुरानी मूर्तियों को बदलकर नयी मूर्तियाँ स्थापित की जातीं हैं। नवकलेवर = नव+कलेवर, अर्थात जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करते हैं। परम्परानुसार नवकलेवर का कार्य तब किया जाता है जब आषाढ़ मास अधिकमास होता है। ये मूर्तियाँ एक विशेष प्रकार की नीम की लकड़ी से बनायीं जाती हैं जिसे 'दारु ब्रह्म' कहते हैं।
हर साल ओडिशा के पुरी में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से 'जगन्नाथ पुरी रथयात्रा' का आयोजन होता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी रथ में बैठकर अपनी मौसी के घर, तीन किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर जाते हैं लाखों लोग रथ खींच कर तीनों को वहां ले जाते हैं। फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तीनों वापस अपने स्थान पर आते हैं। रथयात्रा को देखने के लिए लाखों लोग देश-विदेश से पुरी आते हैं लेकिन इस बार कोरोना संकट के चलते ऐसा नहीं होगा।
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