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नई दिल्ली. महाभारत युद्ध के बाद 36 सालों तक पांडवों का हस्तिनापुर में राज किया। इसके बाद पांडवों ने द्रौपदी और एक कुत्ते के साथ अपनी अंतिम यात्रा के रूप में स्वर्ग की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया। इस दौरान धीरे-धीरे सभी युधिष्ठिर को छोड़कर हर किसी का निधन हो गया। युधिष्ठर कुत्ते के साथ हिमालय के पार स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच सके। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पांडवों ने कलयुग में भी जन्म लिया था।
अश्वस्थामा से प्रसन्न थे भगवान शिव
भविष्यपुराण के मुताबिक, महाभारत युद्ध के दौरान आधी रात के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य यो तीनों पांडवों के शिविर के पास गए और उन्होंने मन ही मन भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। इसपर भगवान शिव ने उन्हें पांडवों के शिविर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी। जिसके बाद अश्र्वत्थामा में पांडवों के शिविर में घुसकर शिवजी से प्राप्त तलवार से पांडवों सभी पुत्रों का वध कर दिया और वहां से चले गए।
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भगवान शिव ने दिया था श्राप
पांडवों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने इसे भगवान शिव से ही युद्ध करने चले गए। पांडव और शिवजी का आमना-सामना हुआ तो युद्ध करने के लिए उनके सामने पहुंचे उनके सभी अस्त्र-शस्त्र शिवजी में समा गए। क्रोधित शिवजी बोले तुम सभी श्रीकृष्ण के भक्त हो। ऐसे में इस अपराध का फल तुम्हे इस जन्म में नहीं बल्कि कलियुग में मिलेगा। लेकिन इसका फल तुम्हें कलियुग में फिर से जन्म लेकर भोगना पड़ेगा। पांडव जब श्रीकृष्ण के पास पहुंचे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि कौन-सा पांडव कलियुग में कहां और किसके घर जन्म लेगा।
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यहां जन्में थे पांचों पांडव
कलियुग में अर्जुन का जन्म परिलोक नाम के राजा के यहां हुआ था। उनका नाम ब्रह्मानंद था। वहीं, युधिष्ठर का जन्म वत्सराज नाम के राजा के यहां हुआ। उनका नाम मलाखान था। कलियुग में भीम वनरस राज्य के राजा बनें। उनका नाम वीरण था। नकुल का जन्म कान्यकुब्ज के राजा रत्नभानु के यहां हुआ। उनका नाम लक्षण था। कलियुग में सहदेव का जन्म भीमसिंह नाम के राजा घर में हुआ। उनका नाम देवसिंह था।
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