Mahabharata:युधिष्ठिर ने जब मां कुंती समेत समस्त महिला जाति को दे डाला था ये श्राप, आज भी है इसका असर!

Mahabharata: 18 दिनों तक चले इस महायुद्ध में पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने अपनी ही मां कुंती को एक अभिशाप दे डाला था जो इतिहास में दर्ज हो गया और जिसकी प्रासंगिकता आज भी कहीं न कहीं है।

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युधिष्ठिर ने जब समस्त महिला जाति को दे डाला था ये श्राप 
मुख्य बातें
  • युधिष्ठिर ने मां कुंती समेत समस्त महिला जाति को दे डाला था श्राप
  • कर्ण के बारे में पता चलने पर युधिष्ठिर अपनी मां कुंती से ही हो गए थे नाराज
  • महाभारत के युद्ध में कुंती ने कर्ण से अपने बेटों को चोट ना पहुंचाने की ली थी कसम

महाभारत हिंदू धर्म का एक बेहद प्रासंगिक ग्रंथ है। इन दिनों महाभारत की चर्चा इसलिए भी जोरों पर है क्योंकि लॉकडाउन के कारण टीवी पर इसे दोबारा से घर-घर में प्रसारित किया जा रहा है और हिंदू महाग्रंथ पर आधारित इस दशकों पुराने सीरियल ने आज भी दर्शकों के दिलों पर छाप छोड़ने में कोई कसर नहीं बाकी रखी है। हर दिन महाभारत के अलग-अलग पहलू टीवी पर दिखाए जा रहे हैं और हिंदू महाग्रंथ की अनोखी कहानियों से एक बार फिर से दर्शकोंका साक्षात्कार हो रहा है। 

वर्तमान में महाभारत में कुरुक्षेत्र का युद्ध दिखाया जा रहा है जहां कौरव और पांडव दोनों युद्ध लड़ रहे हैं। युद्ध का हर एक क्षण इसके परिणाम की ओर अग्रसर होता नजर आता है। इसी महाभारत में एक ऐसी भी कहानी जिसे शायद ही कभी भूला जा सकता है। 18 दिनों तक चले इस महायुद्ध में पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने अपनी ही मां कुंती को एक अभिशाप दे डाला था जो इतिहास में दर्ज हो गया और जिसकी प्रासंगिकता आज भी कहीं न कहीं है।

अगर आपने हाल के एपिसोड देखे होंगे तो आपको याद होगा कि ऋृषि दुर्वासा के श्राप के बाद कुंती ने भगवान सूर्य की प्रार्थना की थी जिसके बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। यही बालक आगे चलकर कर्ण बना। उस बच्चे को कुंती ने समाज के डर से छुपा कर एक टोकरी में रखकर गंगा नदी में बहा दिया था। कुंती के लिए ये कहानी यहीं दफन हो गई लेकिन आदिरथ नंदन नामक व्यक्ति ने गंगा नदी से उस बच्चे को निकाला और उसे अपने पास रखकर उसका पालन पोषण किया।

आदिरथ नंदन राजा धृतराष्ट्र के दरबार में काम करते थे। इसलिए जब कर्ण बड़ा हुआ तो उसकी दोस्ती धीरे-धीरे राजघराने के दुर्योधन से हुई जिसके बाद वहां से किस्मत ने उन्हें वापस से कुंती और पांडवों से मिलवा दिया। जब महाभारत के युद्ध के लिए कर्ण ने दुर्योधन का साथ चुना तो ऐसे समय में कुंती ने उन्हें याद दिलाया कि वह उनका पुत्र है और वह उसकी मां है। इसी समय कर्ण को ये मालूम चला कि वह पांडवों का बड़ा भाई है।

लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि उसने युद्ध के लिए दुर्योधन का साथ चुन लिया था और अब रणक्षेत्र में अंतिम मौके पर दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों के पास वापस आने के लिए उनका क्षत्रिय धर्म इजाजत नहीं देता था। उन्होंने दुर्योधन का युद्ध में साथ देने की कसम खाई थी। ऐसे में कुंती ने भी कर्ण से एक और कसम ले ली कि युद्ध में वह उनके बेटों पांडवों यानि अपने भाइयों को कोई कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।

इन सबके बीच पांडवों को ये भान नहीं था कि कर्ण उनका बड़ा भाई है। पांडवों को इस बात का पता तब चला जब युद्ध खत्म हो गया तब जब धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से युद्ध में कर्ण समेत मारे गए लोगों का अंतिम संस्कार करने को कहा।

इस समय जब युधिष्ठिर को पता चला कि कर्ण उनका बड़ा भाई था और इस बात को उनकी मां ने ही उनसे छुपाए रखी तो वे काफी नाराज हुए। उनका मानना था कि अगर ये बात उन्हें पहले पता चल जाती तो शायद परिस्थिति कोई और मोड़ लेती और हो सकता है इतना बड़ा युद्ध टल भी जाता। युधिष्ठिर को अपनी मां कुंती पर इतना गुस्सा आया कि वे कुंती समेत दुनियाभर की समस्त महिलाजाति को ये श्राप दे डाला कि वे कभी भी कोई सीक्रेट अपने मन में नहीं रख पाएंगी।  

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