Mahashivratri 2022 first Shivlinga : इस तरह सृष्टि पर आया पहला शिवलिंग, जानिए विधेश्वर संहिता से कथा

Mahashivratri 2022 story of first shivlinga : भगवान शिव जब अग्नि रूप के स्तंभ में प्रकट हुए थे, वो जगह अरुणाचल पर्वत थी। इस जगह पर सृष्टि का पहला शिवलिंग आया, लेकिन यह कब और क्यों आया, इसके पीछे की एक अलग कहानी है।

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Maha Shivratri in India  |  तस्वीर साभार: Times of India
मुख्य बातें
  • सृष्टि के पहले शिवलिंग का नाम था अग्निश्वर महादेव
  • शिवरात्रि के दिन शिवजी अग्नि रूप के स्तंभ में प्रकट हुए थे
  • भगवान शिव के सकल और निष्कल दो स्वरूप हैं

Mahashivratri 2022 story of first Shivlinga: शिवलिंग को भगवान शिव का स्रूप माना जाता है और इनकी खूब पूजा की जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन सृष्टि पर आने वाले पहले शिवलिंग के पीछे एक प्राचीन कथा लोकप्रिय है। शिव पुराण की विधेश्वर संहिता के छठवें अध्याय में इस कथा का वर्णन है। जब ब्रह्माजी और विष्णुजी में सृष्टि का बड़ा देव होने को लेकर वार्ता हुई थी तो ये वार्ता विवादित होती चली गयी। आपसी बहस के चलते दोनों देवों ने युद्ध करने का निश्चय कर लिया। हुआ भी यही भयानक युद्ध छिड़ गया, दोनों तरफ से घातक अस्त्र चलने लगे। इस युद्ध से इंद्रदेव सहित सभी देवता भयभीत हो उठे। सब सभी देवों ने भगवान शंकर की शरण ली और इस युद्ध के विषय में बताया। 

जब महाग्नि के रूप में आए शिवजी

कथा के अनुसार,जब ब्रह्माजी और विष्णुमजी में घमासान युद्ध हो गया जिसे शांत करवाने और ब्रह्माजी के छल को रोकने के लिए शिवजी को बीच में आना पड़ा। भगवान शिव ब्रह्माजी और विष्णुजी के युद्ध को शांत करवाने के लिए एक स्तंभ में महाग्नि के रूप में जब प्रकट हुए थे, उस समय आद्रा नक्षत्र यानी अगहन का महीना और शिवरात्रि तिथि थी और वह स्थान था अरुणाचल पर्वत, शिवलिंग का नाम था अग्निश्वर महादेव। यह सृष्टि का पहला शिवलिंग है और यही पर भगवान शिवजी लिंग रूप में प्रकट हुए थे। 

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लिंग रूप में प्रकट हुए भगवान शिव
भगवान शिव ने ब्रह्माजी और विष्णुजी से कहा - शिवरात्रि के दिन जो मेरे लिंग-बेर की पूजा करेगा वह सृष्टि का विधायक तक होगा। जो कोई जितेंद्रिय और निराहार रहकर 1 वर्ष निरंतर मेरी पूजा करेगा वह बड़ा तपस्वी कहलाएगा। लेकिन शिवरात्रि के दिन जो मेरी पूजा करेगा वह तपस्वी के ही समान होगा। जैसे चंद्र दर्शन से समुद्र उमड़ता है वैसे ही यह दिन भी मेरी भक्ति को उमड़ाने वाला है। जो भी आर्द्र नक्षत्र अगहन माह में उमा सहित शिव की पूजा करेगा वह पुत्र कार्तिकेय समान प्रिय होगा।

मेरा स्तंभ, जो पहले लिंग रूप में प्रकट हुआ था, की यदि कोई अगहन माह में, आर्द्रा नक्षत्र में उमा सहित मेरे रूप की या मेरे बेर-लिंग के ही दर्शन करता है वह मुझे कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय होगा है। इस पुनीत दिन में दर्शन से ही महाफल प्राप्त होता है।

इस स्थान में जहां मैं लिंग रूप से प्रकट हुआ हूं, इसका यही नाम होगा और यह पूजन के समय छोटा हो जाएगा। यह भक्ति मुक्तिदायक होने के साथ ही दर्शन स्पर्श और ध्यान से आवागमन से मुक्ति देने वाला होगा।

यहां देह त्यागने वाले को पांचों मुक्ति प्राप्त होंगी
विश्व में इसका नाम अरुणाचल होगा और यहां शरीर छोड़ने वाले को मुक्ति प्राप्त होगी जो इस लिंग में मुझ परमेश्वर की पूजा करेगा उन्हें सालोक्य सामीप्य सारूप्य सार्ष्टि और सायुज्य पांचों प्रकार की मुक्ति प्राप्त होगी। आप सब भी अपने इष्ट को प्राप्त करेंगे।

भगवान शिव ने ब्रह्माजी और विष्णुजी के युद्ध को शांत करवाते हुए उन्हें बताया कि मेरे सकल और निष्कल दो स्वरूप है। जो किसी और के नहीं है, इसीलिए कोई और ईश्वर नहीं हो सकता। मेरा एक तो स्तंभ लिंग रूप है, दूसरा निष्कल सगुण रूप ईश्वर है। यह दोनों ही सिद्ध रूप हैं।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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