क्या माउंटआबू में हुआ था भगवान गणेश का जन्म?, ये हैं सूबूत

आध्यात्म
Updated Oct 24, 2017 | 23:31 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

पौराणिक मान्यता के मुताबिक स्कन्द पुराण के अर्बुद खंड के मुताबिक गौरी शिखर पर्वत पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गौरी शिखर यानि अर्बुद पर्वत और भगवान गणेश के जन्म स्थान पर बना मंदिर और उनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं ।

साभार- अनिल कुमार ऐरन  |  तस्वीर साभार: Times Now

माउंट आबू (राजस्थान). देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान गणेश का जन्म माउंटआबू में हुआ था और माता पार्वती ने अर्बुद पर्वत के इशान शिखर पर बैठकर पुत्र की कामना के लिए पुन्यंक नामक व्रत किया था । एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक स्कन्द पुराण के अर्बुद खंड के मुताबिक गौरी शिखर पर्वत पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गौरी शिखर यानि अर्बुद पर्वत और भगवान गणेश के जन्म स्थान पर बना मंदिर और उनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं ।

मिलते हैं भगवान गणेश के जन्म के प्रमाण
माउंटआबू के अर्बुद पर्वत सहित अरावली पर्वत के सभी धर्म ग्रंथों में देवी देवताओं के निवास स्थान होने का उल्लेख है।स्कन्द पुराण के तीसरे अध्याय में अर्बुद खंड के अनुसार माउंटआबू के गौरी शिखर जिसे अब गुरु शिखर कहते हैं भगवान गणेश के जन्म होने के प्रमाण मिलते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यहां पर माता पार्वती ने अर्बुद पर्वत के इशान शिखर पर बैठकर पुत्र की कामना से पुन्यंक नामक व्रत किया था जिसके सफल होने पर गौरी शिखर पर गणेश का जन्म हुआ था, करीब 200 साल पहले जाने माने संत रामदास ने भी आबू कल्प में लिखा है कि महाविनायक का जन्म गौरी शिखर पर पश्चिम दिशा में हुआ था।
माउंटआबू में गोबर गणेश की प्रतिमा दुनिया भर में मशहूर है । गोबर गणेश की ये मूर्ति दुनिया भर में भगवान गणेश की इकलौती मूर्ति है जो गोबर से बनी हुई है ।इस प्राचीन मूर्ति के बारे में ये मान्यता है कि यहां जो भी मांगा जाता है गणपति उसकी मुराद ज़रूर पूरी करते है । 

32 तीर्थो में पहला मुख्य तीर्थ
भगवान गणपति पूरे अर्बुदांचल में विराजते है और जो भी भक्त उनसे जो भी मुराद मागंता है वो पूरी करते है । माउंटआबू में गणपति महाविनायक मंदिर के महंत नरसिंह दास महाराज के मुताबिक गौरी शिखर पुराणों में मां पार्वती के निवास स्थान के रूप में वर्णित है। उनके अनुसार ही प्रारंभ में इस स्थान का नाम अर्बुदांचल था। माउंट आबू में महाविनायक तीर्थ होने का वर्णन भी अर्बुद खंड में आता है, इसके अनुसार यह 32 तीर्थो में पहला मुख्य तीर्थ है ।स्कन्द पुराण में वर्णन है कि इस पर्वत पर गणेश का जन्म होने के कारण इसके दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है और व्यक्ति वैकुंठ लोक को प्राप्त होता है। यही वजह है कि श्रद्धालुओं में इस जगह को लेकर गहरी आस्था है।

शिवजी ने इसी पर्वत पर रखी थी शर्त 
 यूं तो भगवान गणेश की जन्म स्थली को लेकर मतभेद रहे हैं लेकिन किसी भी देवी देवता की जन्म स्थली को लेकर सबसे प्रमाणिक ग्रंथ अगर कोई है तो वो स्कन्द पुराण है। स्कंद पुराण में इस बात का जिक्र सात बार आया है कि भगवान गणेश का जन्म अर्बुदांचल में हुआ । इसी अर्बुद पर्वत पर भगवान शिव ने अपने पुत्रों के सामने शर्त रखी कि जो भी ब्रह्माण्ड की परिक्रमा सबसे पहले करके आएगा वही सबसे पहले पूजा जाएगा। उनके पुत्र कार्तिकेय तो ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने चले गए लेकिन पुत्र गणेश ने वही पर शिव और मां पार्वती की परिक्रमा कर ली और कहा कि सारा ब्रह्माण्ड तो आप में समाया हुआ है इसलिए मैंने आप की परिक्रमा कर ली है। उसके बाद से भगवान शंकर उनसे प्रसन्न हो गए और उसके बाद से किसी भी पूजा में सबसे पहले गणेश भगवान की पूजा होती है ।

विराजमान है गोबर गणेश की प्रतिमा
स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में गणेश के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है । मां पार्वती ने भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति का वर मांगा । भगवान शंकर ने पावर्ती को पुण्यंक नाम का व्रत करने को कहा । जिसके बाद उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान भगवान शंकर से मिला।इसके बाद भगवान शंकर का जन्म गोबर से हुआ।उनके जन्म के समय 33 करोड़ देवी-देवताओं के साथ भगवान शंकर ने अर्बुदारण्य की परिक्रमा की।ऋषि-मुनियों ने देवी-देवताओं के सहयोग से गोबर गणेश की प्रतिमा स्थापित की जो आज सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है।
  गोबर गणेश मंदिर को लंबोदर मंदिर,सिद्धिविनायक मंदिर,गोबर गणेश मंदिर या फिर सिद्धि गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है ।गोबर गणेश की ये प्रतिमा आज भी भव्य रुप में विराजमान है ।गोबर से बनी हुई भगवान गणेश की ये प्रतिमा पूरी दुनिया में इकलौती है । यह प्रतिमा 4,500 साल पुरानी है। गणेशोत्सव के मौके पर यहां श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा लगता है और भगवान के दर्शन करने के लिए देश और दुनिया के कई हिस्सों से लोग आते है ।

चढ़नी होती है 200 सीढ़ियां 
गणेश की प्रतिमा यहां बालरुप में विराजमान है । भगवान के दर्शन के लिए 200 सीढि़यों की चढ़ाई चढ़नी होती है ।गणेशोत्सव के मौके पर यहां देश विदेश से लाखों श्रद्धालु जुटते है। महाराष्ट्र और गुजरात से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है ।गणेश की मूर्ति के दर्शन करने से ही अलौकिक एहसास होता है ।जिसे यहां आकर ही महसूस किया जा सकता है।इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान के दरबार में आकर जो कुछ भी मांगा जाए वो भक्त की मुराद ज़रूर पूरी करते है ।गणेश विघ्नहर्ता भी है लिहाजा उनके बारे मे ये कहा जाता है कि इस मूर्ति के दर्शन और नमन मात्र से ही श्रद्धालु के सभी कष्ट दूर हो जाते है ।वो भय के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है । भगवान गणेश ऐसा करने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी करते हैं। 

करनी चाहिए तीन परिक्रमा
भक्तों को विनायक के मंदिर की तीन परिक्रमा करनी चाहिए। इसके अलावा भक्त अगर भगवान विनायक को खुश करना चाहते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहते हैं तो उन्हें विनायक के नाम से तर्पण करना चाहिए। भगवान गणेश को दुर्वा और मोदक बेहद प्रिय हैं। दुर्वा के बगैर उनकी पूजा अधूरी समझी जाती है। भगवान गणेश को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए वर्ना अशांति होती है।

नहीं करनी चाहिए तीन गणेश की पूजा
पद्म पुराण के मुताबिक उनकी पूजा दूब से की जाती है। घर में कभी भी तीन गणेश की पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश की तीन प्रदक्षिणा ही करनी चाहिए। भगवान गणपति की आराधना में नामाष्टकका स्तवन अवश्य करना चाहिए। जिससे चतुर्थी के देवता भगवान वरद विनायक प्रसन्न होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति अवश्य करावें। हरित वर्ण का दूर्वा जिसमें अमृत तत्त्‍‌व का वास होता है, उसको भगवान श्री गणेश पर चढाने से समस्त विघ्नों का विनाश हो जाता है तथा अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। 

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