देवी चंद्रघंटा की पूजा करने से अशुभ ग्रहों के कारण मिलने वाले कष्ट से मनुष्य को मुक्ति मिलती है। यदि जीवन में आपके पेरशानियां आती रहती है और बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं तो आपको देवी चंद्रघंटा की पूजा जरूर करनी चाहिए। देवी के आशीर्वाद से अशुभ ग्रहों के प्रभाव से मनुष्य के मुक्ति मिलती है। देवी की पूजा करने से मनुष्य के अंदर वीरता-निर्भरता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होने लगता है। यही नहीं देवी की पूजा करने वाले के चेहरे पर एक तेज उत्पन्न होता है। मुख, नेत्र तथा सम्पूर्ण काया में कान्ति आती है। तो आइए जानें की देवी की पूजा कैसे करनी चाहिए और उनका प्रिय रंग-भोग, आरती, सिद्ध मंत्र और व्रत कथा क्या है।
19 अक्टूबर को नवरात्रि के तीसरे दिन पूजा का शुभ मुहूर्त दिन में 11:45am से लेकर दोपहर 12:35 तक है। अगला शुभ समय 2:02pm से 02:49pm तक है। शाम को पूजन का शुभ समय 05:39pm से 06:18 pm तक है।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप (Maa Chandraghanta Ka Swaroop)
मां चंद्रघंटा का स्वरूप सौम्य और शांति से भरा होता है। देवी की सवारी शेर है और उनके साथ ही शेर भी हमेशा सोने की तरह चमकते रहते हैं। देवी परम शांतिदायक और कल्याणकारी मानी गई हैं। देवी का यह रूप देवगण, संतों एवं भक्तों के मन को संतोष प्रदान करता है। देवी राक्षसों का वध कर उनके आतंक से मनुष्य और देवताओं को मुक्त करने वाली हैं। वह अपने भक्तों के दुखों को दूर करने वाली है और इसलिए उनके हाथों में धनुष, त्रिशूल, तलवार और गदा होता है। देवी चंद्रघंटा के सिर पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र नजर आता है। इसी वजह से उन्हें चंद्रघंटा के नाम से पुकारा जाता है।
देवी के शरण में आने वाला कभी खाली हाथ नहीं जाता। शत्रु भय हो तो देवी की पूजा बहुत फलीभूत होती है। साथ ही यदि कुंडली में ग्रह कष्ट देने वाले हो अथवा कमजोर अवस्था में हो तो देवी की पूजा से ग्रह दोष मुक्त होता है। भय को दूर कर देवी मनुष्य में आत्मविश्वास का संचार करती हैं। साथ ही सुंदर काया भी प्रदान करती हैं।
स्नान करने के बाद नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा के समक्ष व्रत और पूजा का संकल्प लें। इसके बाद देवी को स्नान करा कर वस्त्र प्रदान करें। तत्पश्चात देवी का श्रृंगार करें। उन्हें सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प आदि अर्पित करें। इसके बाद देवी के समक्ष दुर्गा चालिसा का पाठ करें। देवी दुर्गा की आरती गाने के बाद देवी के सक्षम अपने कष्ट को रखें। इसके बाद इस मंत्र ” ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः ” का जाप करें।
देवी को अर्पित करें इस रंग का पुष्प और भोग (Maa Chandraghanta Puja Flowers color)
देवी की पूजा में चमेली का पुष्प अर्पित करना श्रेयस्कर होता है। यदि चमेली न हो तो आप कोई भी नीला या लाल रंग का पुष्प देवी को अर्पित कर सकते हैं। इस दिन दूध से बनी किसी भी मिठाई या हलवे का भोग लगाएं। रेवड़ी, सफेद तिल और गुड़ का भोग भी लगा सकते हैं।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
मां चंद्रघंटा के सिद्ध मंत्र (Maa Chandraghanta Ke Siddh Mantra)
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां चंद्रघंटा का स्तोत्र पाठ (Maa Chandraghanta Ke Stotra)
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
एक बार देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चलता ही रहा। असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवाताओं के की ओर से इंद्र नेतृत्व कर रहे थे। महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं स्वर्गलोक का राजा बन गया है। यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया और क्रोध से तीनों देवों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र शस्त्र सजा दिए। इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया। देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं।उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है। महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा। अन्य देत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े। देवी ने एक ही झटके में ही महिषासुर का संहार कर दिया।
नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा का ध्यान।
मस्तक पर है अर्ध चन्द्र, मंद मंद मुस्कान॥
दस हाथों में अस्त्र शस्त्र रखे खडग संग बांद।
घंटे के शब्द से हरती दुष्ट के प्राण॥
सिंह वाहिनी दुर्गा का चमके सवर्ण शरीर।
करती विपदा शान्ति हरे भक्त की पीर॥
मधुर वाणी को बोल कर सब को देती ग्यान।
जितने देवी देवता सभी करें सम्मान॥
अपने शांत सवभाव से सबका करती ध्यान।
भव सागर में फंसा हूं मैं, करो मेरा कल्याण॥
नवरात्रों की मां, कृपा कर दो मां।
जय मां चंद्रघंटा, जय मां चंद्रघंटा॥
तो नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा करें और अपने संकट और कष्ट से मुक्ति पाएं।
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