रहकोला देवी को रणकौशला देवी के नाम से भी जाना जाता है। ये देवी मंदिर कई हजार वर्ष पूर्व का माना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में आने से सभी इच्छाएं और कामनाएं पूर्ण होती है। इस मंदिर से एक बेहद आश्चर्यजनक बात जुड़ी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में एक अदृश्य शक्ति पूजा करने आती है और सर्वप्रथम देवी की पूजा ये शक्ति ही करती है। शक्ति के उपासकों के लिए देवी का ये मंदिर बहुत महत्व रखता है। रहकोला देवी का मन्दिर हजारवीं शताब्दी का बताया जाता है। इसका निर्माण चन्देल राजाओं ने कराया था और यहां देवी दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना आल्हा उदल के बड़े भाई सिरसा राज्य के सामन्त वीर मलखान एवं उनकी पतिव्रता पत्नी गजमोतिन ने की थी। वीर मलखान देवी के बहुत बड़े भक्त थे।
मन्दिर से पूर्व दिशा में करीब 4 किमी दूर पहूज नदी है और इस नदी के किनारे सिरसा रियासत की प्राचीन गढियों के अवशेष भी मिले हैं। बताया जाता है कि सिरसा की गढ़ी की बावड़ी से लेकर रहकोला देवी के मन्दिर तक भूमिगत सुरंग है और इस सुरंग से ही उस समय वीर मलखान देवी की पूजा करने आते थे। मान्यता है कि आप भी देवी की पूजा करने इसी रास्ते से वीर मलखान आते हैं। वीर मलखान अपनी महारानी गजमोतिन के साथ बावड़ी में स्नान के बाद देवी मन्दिर में आज भी पूजा करने आते हैं, क्योंकि रोज सुबह देवी के मंदिर के कपाट खुलने से पहले उनकी पूजा हुई नजर आती है। यही कारण है कि लोग मानते हैं कि ये अदृश्य शक्ति वीर मलखान ही हैं, क्योंकि वह देवी के परम भक्त थे।
हालांकि, कालांतर में सिरसा की बावड़ी में जल स्तर बढ़ जाने से मन्दिर के गर्भगृह की ओर जाने वाले दरवाजे जलमग्र हो चुके हैं। मन्दिर के गर्भगृह में जगदम्बा दुर्गा बेदह मोहक स्वर्ण प्रतिमा स्थापित है। देवी दुर्गा का ही स्वरूप रेहकोला देवी का माना गया है। देवी सिद्धिदात्री मानी गईं और मान्यता है कि यहां यदि कोई भी मनोकामना लेकर आए वह जरूर पूरी होती है। मंदिर में पहुंचते ही आत्मिक शांति का अहसास होता है। इसलिए कहा जाता है कि इस मंदिर में देवी जागृत अवस्था में हैं। इसलिए यहां आने पर सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं।
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