Raksha Bandhan 2022 Vrat Katha in Hindi: रक्षाबंधन हर वर्ष सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस साल रक्षाबंधन को लेकर लोगों के बीच में काफी असमंजस है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य भद्रपद काल में नहीं मनाया जाता है। इस वजह से भाई बहन का यह पावन पर्व रक्षाबंधन 12 अगस्त को मनाया जा रहा है। ऐसा कहा जाता है, कि रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत मां लक्ष्मी ने की थी। क्या आपको पता है रक्षाबंधन जैसे पावन पर्व की शुरुआत कैसे हुई थी। अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथा बताते हैं।
Raksha Bandhan 2022 Date, Muhurat, Tithi And All You Need To Know
पहली कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में राजा बलि जब अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तो उस समय भगवान श्री विष्णु राजा बलि को छलने के लिए वामन अवतार का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी। उस समय राजा बलि ने बिना सोचे भगवान विष्णु को तीन पग देने का वचन दे दिया। देखते ही देखते भगवान विष्णु ने अपने छोटे से पांव से दो पैग में आकाश और पाताल को नाप लिया। तीसरे पग के लिए राजा बलि के पास कोई जगह नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपने सिर को भगवान विष्णु के चरण के नीचे रख दिया।
यह देखकर भगवान विष्णु राजा बलि से बहुत प्रसन्न हुए। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से वचन मांगा कि वह जब देखें तो उसे भगवान विष्णु भी दिखाई दें। यह सुनकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया और तथास्तु कहकर पाताल लोक में चले गए। जब भगवान विष्णु पाताल लोक में चले जाने से माता लक्ष्मी को बहुत चिंता होने लगी। माता लक्ष्मी की चिंता को देखकर देवर्षि नारद ने माता एक को सुझाव दिया, कि वह राजा बलि को अपना भाई बना लें।
ऐसा करने से उनके स्वामी वापस उनके पास आ जाएंगे। नारद मुनि की बात सुनकर माता लक्ष्मी स्त्री का वेश धारण करके रोती हुई पाताल लोक में राजा बलि के पास पहुंची। राजा बलि ने जब उन्हें रोता हुआ देखा, तो उन्होंने उनसे रोने का कारण पूछाय। तब माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है। इस वजह से मैं बहुत दुखी हूं। यह सुनकर राजा बलि ने माता लक्ष्मी से कहा तुम मेरी बहन बन जाओं। इसके बाद माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपनी स्वामी भगवान विष्णु को वापस मांग लिया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है, कि उसी समय से रक्षाबंधन का त्योहार संसार में प्रचलित हो गया।
दूसरी कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी कनिष्ठा उंगली सुदर्शन चक्र की से कट गई थी। उंगली कटने की वजह से रक्त की धार बहने लगी थी। उसी समय द्रोपदी ने अपने सारी की चीज की एक टुकड़े को भगवान श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया। उसके बाद से ही भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपने बहन के रूप में स्वीकार कर उन्हें हर संकट से बचाने का वचन दिया था। इसी वजह से भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को चीर हरण में निर्वस्त्र होने से भी बचाया था।
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