प्रसाद, सिंदूर से चरण स्पर्श तक, जानिए पूजा की इन विधियों का मतलब

आध्यात्म
Updated Jan 26, 2018 | 17:25 IST | Shivam Pandey

पूजा के वक्त कुछ चीजों को जरूरी माना गया है। इसमें प्रसाद, मंत्र,  शंखनाद और चरण स्पर्श। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर एक परंपरा का अपना एक अलग महत्व है।  

प्रसाद के जरिए हम ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।   |  तस्वीर साभार: TOI Archives

नई दिल्ली. हिन्दू धर्म में पूजा का विशेष महत्व है। वहीं, पूजा के वक्त कुछ चीजों को जरूरी माना गया है। इसमें प्रसाद, मंत्र,  शंखनाद और चरण स्पर्श। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर एक परंपरा का अपना एक अलग महत्व है।  

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प्रसाद और आचमन 
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे मनुष्य! तू जो भी खाता है अथवा जो भी दान करता है, होम-यज्ञ करता है या तप करता है, वह सर्वप्रथम मुझे अर्पित कर। प्रसाद के जरिए हम ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इसके अलावा यह उसके प्रति आस्थावान होने का भी भाव है। वेदों के मुताबिक धार्मिक कार्यों में तीन बार आचमन करने को प्रधानता दी गई है। कहते हैं कि तीन बार आचमन करने से शारीरिक, मानसिक और वाचिक तीनों प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और अनुपम अदृश्य फल की प्राप्ति होती है।

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क्यों है चरण स्पर्श की परंपरा
चरण स्पर्श की क्रिया में अंग संचालन की शारीरिक क्रियाएं व्यक्ति के मन में उत्साह, उमंग, चैतन्यता का संचार करती हैं। यह अपने आप में एक लघु व्यायाम और यौगिक क्रिया भी है, जिससे मन का तनाव, आलस्य और मनो-मालिन्यता से मुक्ति भी मिलती है।

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शंख बजाने का महत्व 
अथर्ववेद के मुताबिक शंख अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिर्मंडल और सुवर्ण से संयुक्त होता है। शंखनाद से शत्रुओं का मनोबल निर्बल होता है। पूजा-अर्चना के समय जो शंखनाद करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान श्रीहरि के साथ आनंदपूर्वक रहता है। इसी कारण सभी धार्मिक कार्यों में शंखनाद जरूरी है।'

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