साईं की पूजा बहुत सामान्य और सरल होती है। साईं की पूजा में बहुत विशेष नियम भी नहीं बनाए गए हैं। साईं जिस तरह से फकीरी का जीवन जीते थे और सादगी पसदं करते थे, ठीक उसी तरह उनकी पूजा में भी कड़े नियम नहीं हैं। साईं की पूजा बहुत ही सादगी के साथ की जाती है और उनका चढ़ावा भी बहुत सादा है। साईं को खिचड़ी पसंद थी और यही कारण है कि उनका विशेष प्रसाद भी खिचड़ी ही है। लेकिन साईं भक्तों को एक बात का जरूर ध्यान देना चाहिए कि साईं सत्चरित्र का रख-रखाव सही तरीके से करना चाहिए। साथ ही सत्चरित्र के रख-रखाव के नियम भी बताए गए हैं।
साईं भक्त श्री साईं सत्चरित्र की पुस्तक अपने पास जरूर रखते हैं और मान्यता है कि इस पुस्तक को पढ़ने भर से साईं कृपा मिल जाती है। श्री साईं सत्चरित्र पवित्र पुस्तक है और इसकी पवित्रता का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। तो आइए जानते हैं कि श्री साईं सत्चरित्र का रख-रखाव और पालन नियम क्या है।
1) श्री साईं सत्चरित्र पुस्तक को कभी भी खुले तौर पर नहीं रखनी चाहिए। इसे पीले अथवा लाल वस्त्र के खोल में अथवा कवर लगाकर ही रखना चाहिए। खुली पुस्तक रखना श्री साईं सत्चरित्र का अपमान माना जाता है।
2) श्री साईं सत्चरित्र पुस्तक को कभी भी कहीं पर भी नहीं रखना चाहिए। पुस्तक का स्थान घर के मंदिर में होना चाहिए। संभव हो तो इसे साईं की तस्वीर या प्रतिमा के पास ही किसी आसन पर रखनें। सीधे जमीन पर ये किताब नहीं रखी जानी चाहिए।
3) श्री साईं सत्चरित्र को हमेशा पवित्र मन और शरीर के साथ छूना और पढ़ना चाहिए। गुरुवार को इस पुस्तक को जरूर पढ़ें और प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इसे पढ़ना चाहिए। इससे साईं की विशेष कृपा मिलती है।
4) श्री साईं सत्चरित्र का पाठ रात को सोने से पहले जरूर करना चाहिए और मन-मस्तिष्क में साईं के वचनों को पालन करने का निश्चय करते हुए, साईं का ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने वाले को साईं का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त होती है।
5) श्री साईं सत्चरित्र पढ़ते समय संभव हो तो इसे पूजा कक्ष या साईं की तस्वीर के समक्ष पढ़ें। यदि यह संभव न हो तो मन में पहले साईं की छवि को दिल में उतार लें फिर पुस्तक पाठ शुरू करें।
6) श्री साईं सत्चरित्र पुस्तक को बांटना पुण्यकर्म माना गया है। साईं भक्त को यह कार्य करते रहना चाहिए।
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