शिरडी वाले साईं बाबा की पूजा के लिए उम्र, जाति या महिला-पुरुष का भेद नहीं होता। उनकी पूजा और व्रत कोई भी कर सकता है। बस व्रत करने के नियम का सही ज्ञान होना चाहिए और साथ ही उपवास रखने वाले को व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए। साईं जात-पात को नहीं मानते थे और वह हमेशा एक ही बात कहते थे कि सबका मालिक एक है। इसलिए साईं के व्रत में बहुत नियम-कायदे नहीं हैं। साईं की पूजा के लिए सुबह या शाम किसी भी वक्त पूजा जा सकता है। साईं की तस्वीर के सामने पीला या लाल आसन बिछा कर पूजा करें। साईं को चंदन या कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए और पीले पुष्प और धूप-दीप जला कर सच्चे मन से उन्हें याद कर लें। यदि व्रत रख रहे तो इस दिन व्रत कथा जरूर सुनें।
एक शहर में कोकिला और उसका पति महेशभाई रहते थे। महेशभाई का स्वाभाव झगडालू था, लेकिन कोकिला उतनी ही मुधर वाणी और धार्मिक प्रवृत्ति की थी। महेश कटुभाषी था और यही कारण था कि धीरे-धीरे उसका रोजगार ठप होने लगा। कमाई बंद होने पर महेश ने गलत राह पकड़ ली। वह पहले से ज्यादा चिडचिडा हो गया। एक दिन कोकिला के दरवाजे पर एक वृद्ध महाराज आए और कोकिला से दाल-चावल भिक्षा में मांग की। कोकिला ने महाराज को दाल-चावल दे दिया। तब महाराज ने उसे सखी रहने का आशीर्वाद दिया। ये सुनकर कोकिला ने कहा महाराज मेरी किस्मत में तो सुख है ही नहीं।
महाराज ने कोकिला के दुख को सुनकर कर कहा कि यदि वह श्री साईं का कम से कम 9 गुरुवार उपवास रखेगी तो उसके दुख दूर हो जाएंगे। महाराज ने कहा कि उपवास में केवल फलाहार करना होगा, वह भी एक समय। साईं के नौ व्रत करने के बाद साईं मंदिर में इस व्रत का उद्यापन करना। व्रत के उद्यापन के दिन भूखे को भोजन कराना और साईं व्रत की किताबें 7, 11, 21 यथाशक्ति लोगों को भेट कर देना। कोकिला ने ऐसा ही किया और उसके जीवन के सारे कष्ट दूर हो गए। पति सुधर गया और उसका व्यवहार भी। रोजगार भी शुरू हो गया।
एक दिन कोकिला की जेठानी भी उसके घर आए और बताया कि उनके बच्चें पढाई नहीं करते परीक्षा पास ही नहीं कर पाते। तब कोकिला ने साईं का व्रत करने की सलाह दी। उसकी जेठानी ने भी वैसे ही व्रत शुरू किया और उद्यापन किया। जेठानी के बच्चे भी व्रत के प्रभाव से सही हो गए।
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