Sai Kripa Part 10: शिरडी वाले साईं बाबा के बारे में कहा जाता है कि उनका कुछ भी नहीं था, लेकिन वह अपने भक्तों को अपने द्वार से कभी खाली हाथ नहीं जाने देते थे। वह अपने भक्तों ही नहीं अपने द्वार पर आए जानवर और चिड़ियों तक के लिए भोजन एकत्र करते थे।
आपको जान कर आश्चर्य होगा कि साईं जहां रहते थे वहां उनके भक्त ही नहीं जानवर और चिड़ियां भी बिना डरे रहा करते थे। साईं अपनी कुटिया में ईंट को सिर पर रखकर जमीन पर सोते थे। साईं की कुटिया खाली थी क्योंकि वह फकीरी का जिंदगी जीते थे, लेकिन साईं के पास आने वाला झोली भर का जाता था।
पांच घरों से लेते थे साईं भिक्षा
साईं रोज भिक्षा मांगने निकलते थे, लेकिन वह दिन भर घूमते हुए केवल पांच घर में ही भिक्षा मांगने जाते थे। इन पांच घर के अलावा साईं ने कभी भी कहीं और से भिक्षा नहीं ली।
मान्यता है कि जिन पांच घरों से भिक्षा लेने वह जाया करते थे वह घर सखाराम पाटील शैलके, वामनराव गोंदकर, बय्याजी अप्पा कोते पाटील, बायजाबाई कोते पाटील और नंदराम मारवाड़ी के होते थे।
भिक्षाटन को इन्हें खिलाते थे
शिरडी के साईं बाबा मात्र पांच घरों से ही भिक्षा लेते थे, लेकिन आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इस भिक्षाटन का एक दाना भी वह अपने पर खर्च नहीं करते थे। बल्कि ये भिक्षाटन उनके प्रांगण में रहने वाले जानवर और चिड़ियों के लिए होता था। यही नहीं यदि मौके पर कोई आ जाए तो उसे भी उस भिक्षाटन में से कुछ न कुछ दे देते थे।
बायजा माई के हाथ का खाना खाते थे साईं
साईं बाबा अपने पूरे जीवन काल में केवल एक ही इंसान के हाथ से खाना खाए। यह थी बायजा माई। बायजा माई अपने हाथ से बना खाना साईं को खिलाती थीं और उसे साईं के पास खुद ले कर आती थीं।
बायजा माई के पास जो कुछ होता वह बनाती और साईं को बड़े प्रेम से खिलाया करती थीं। साईं वह अपना भाई मानती थीं। बायजा के पुत्र इसी कारण साईं को मामा कहते थे।
आज भी मौजूद है साईं मंदिर में कोलंबा
सांई बाबा जिस पात्र में भिक्षा मांगते थे उसे कोलंबा कहते हैं और ये कोलंबा आज भी साईं की समाधि स्थल पर मौजूद है। मंदिर के पुजारी दिन में दो बार बाबा को भोग इसी कोलंबा में लगाते हैं और इस कोलंबा को द्वारकामाई में धुनि के पास भी देखा जा सकता है।
कोलंबा के साथ पत्थर भी है मौजूद
साईं जिस पत्थर पर बैठा करते थे वह आज भी शिरडी में है। द्वारकामाई में यह पत्थर रखा है। बाबा प्रतिदिन इसी पर बैठा करते थे। यह पत्थर पहले लेडी बाग में था। गांव के लोग इसका उपयोग कपड़े धोने के लिए किया करते थे। एक बार लोगों ने देखा बाबा उस पर प्रतिदिन बैठते हैं तो बाद में इस पत्थर को उठाकर गांववालों ने इसे द्वारकामाई में रख दिया।
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