Sankashti Chauth Puja: गणेश संकष्टी व्रत साल में 12 होती हैं। हर महीने में यह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री गणेश की पूजा कर पूजा अर्चना करने से जिंदगी की सभी विघ्न-बाधाएं हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं। भगवान श्री गणेश सब देवताओं के भी पूजनीय है। सब देवता भी किसी कार्य को पूरा करने के लिए भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करते हैं। पढ़ाई से संबंधित विघ्न-बाधाओं को दूर करने में भी संकट मोचन की पूजा बहुत ही उत्तम मानी जाती है। यदि आप भी भगवान श्री गणेश जी का आशीर्वाद अपने ऊपर बनाए रखना चाहते है, तो कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना जरूर करें। तो आइए जाने संकष्टी की कथा।
संकष्टी चौथ की व्रत कथा
एक बार की बात है एक शहर में एक देवरानी और जेठानी रहती थी। देवरानी बहुत गरीब थी। जिस कारण से वह अपने जेठानी के घर कामकाज करके अपना गुजारा किया करती थी। देवरानी का पति जंगल में लकड़ी काटकर हर दिन शहर बेचने जाया करता था। फागुन मास में एक बार देवरानी ने तिल और गुड़ को मिलाकर तिलकुट बनाकर संकष्टी व्रत की कथा सुनी। कथा सुनने के बाद देवरानी ने तिलकुट एक बर्तन में रख दिया और काम करने के लिए अपनी जेठानी के घर चली गई।
उसके बाद देवरानी ने खाना बनाया। खाना बनाने के बाद जेठानी के बच्चों को खाना खाने के लिए कहा, तो बच्चों ने कहा कि जब मां खाएंगी तभी हम खाएंगे। इसके बाद उसने अपने जेठ को खाना खाने के लिए कही, तो जेठ ने कहा कि जब सब खाएंगे तभी मैं भी खा लूंगा। तब देवरानी जेठानी से कही कि आज अभी तक किसी ने खाना नहीं खाया है। इस कारण से जेठानी ने देवरानी को खाना नहीं दिया। उधर देवरानी के पति और उसके बच्चे उसके आने की आस में बैठे थे, कि मां जब आएगी तो खाना लेकर आएगी तभी खाएंगे।
जब देवरानी अपने घर पहुंची तो उसके पास खाना न देखकर बच्चे दुखी हो गए और रोने लगे। इस पर देवरानी के पति गुस्सा आया और उसने गुस्से में अपनी पत्नी से कहा कि दिन भर काम करके दो रोटी खाने के लिए भी नहीं ला सकती हो, तो फिर काम क्यों करती हो। सारी बात कहने के बाद उसने अपनी पत्नी को कपड़े धोने वाले डंडे से मारा जिससे डंडा टूट गया। मार के दर्द से देवरानी रात भर रोती रही और भगवान श्री गणेश को याद करते हुए एक घूंट पानी पीके सो गई। तब उसी रात भगवान श्री गणेश देवरानी के सपने में आए और उन्होंने देवरानी से कहा, सो रही हो। तब देवरानी ने कहा हे प्रभु मैं न सो रही हूं, न जाग रही हूं, बीच में ही हूं। तब भगवान श्री गणेश बोले कि मुझे कुछ खाने के लिए दो। तब देवरानी ने कहा हे प्रभु मैं आपको क्या भेट करूं, मेरे पास कुछ भी नहीं है। पूजा में तिलकुट जो आपको चढ़ाया था, वह प्लेट में रखा है उसे आप लेकर खा लो। तब भगवान श्री गणेश बोले कि मुझे निपटाई लगी है, कहां करू। तब देवरानी ने कहा यह घर पूरा परा है आप कहीं भी निपट लो। तब भगवान श्री गणेश बोले कि इसे मैं पोछू कहाँ। इस बात को सुनकर देवरानी को गुस्सा आ गया और उसने भगवान से कहा कि मेरे माथे में पूछ लो और गणेश जी ने यही किया।
जब देवरानी सुबह उठी, तो उसने देखा कि उसका घर पूरा हीरे जवाहरात से भरा पड़ा है। उसके माथे पर हीरे मोती की टीके लगे हुए है। अगले दिन देवरानी अपनी जेठानी के घर काम करने के लिए नही गई। जेठानी ने सोचा कि शायद कल मैंने खाना नहीं दिया इस वजह से वह काम करने नहीं आ रही है। तब जेठानी के बच्चे उसे बुलाने आए। तभी वह काम करने नही गई। तब बच्चे अपनी मां से जाकर कहे, कि चाची का घर हीरे मोती से जगमग आ रहा है। यह सुनकर जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के घर आई और पूछा यह सब कैसे हुआ। तब देवरानी ने जेठानी से सारी घटना कह डाली।
तब जेठानी ने अपने पति से जाकर कहा कि आप मुझे डंडे से मारो। फिर जेठानी ने चूरमा बनाकर कर रख दिया और सो गई। उसी रात में जेठानी को गणेश जी सपने में आए और कहने लगे कि मुझे भूख लगी है, क्या खाउं। तब जेठानी ने कहा कि आपने तो मेरे देवरानी के घर चुटकी भर तिलकुटा ही खाया था, मैं तो आपके लिए चूरमा बना कर रखा है, वह खा लीजिए। फिर गणेश जी बोले मुझे निपटाई लगी है, कहां करूं। तब जेठानी ने कहा मेरे देवरानी की टूटी फूटी झोपड़ी थी, यहां पर महल बना पड़ा है आप कहीं भी निपट लो। तब गणेश जी पूछे कहां पोंछू। जेठानी ने कहा सर पर पूछ लो। कल सुबह जेठानी जल्दी उठ गई। तब उसने अपने घर को बहुत गंदा देखा। उसके माथे भी गंदगी लगी पड़ी थी। यह देखकर जेठानी ने भगवान से कही, ये आपने क्या किया। यह कहकर जेठानी कमरे को साफ करने की कोशिश करने लगी। लेकिन गंदगी और बढ़ती चली गई।
तब जेठानी के पति ने अपनी पत्नी से कहा कि तेरे पास तो सब कुछ था, तेरे लालच की वजह से यह सब हो गया। यह सुनकर जेठानी गणेश जी से माफी मांगने लगी। यह देखकर गणेश जी ने कहा तुम्हारी लालच की वजह से यह सारा हुआ है। बाद में गणेश जी जेठानी को माफ करके अपनी माया को अपने अंदर समेट लिया।
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