हिंदू धर्म में सावन मास का महत्व बहुत अधिक है। शिवजी को समर्पित इस मास में व्रत और पूजा करने से बहुत सी असाध्य मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस पवित्र महीने के हर सोमवार का विशेष महत्व होता है। सावन के सोमवार में उपवास रखना मोक्ष की प्राप्ति दिलाता है। साथ ही जीवन के हर संकट दूर होते हैं और सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सावन में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा करना बेहद जरूरी होता है। साथ ही सावन के सोमवार की कथा सुनना भी उतना ही महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है। सावन सोमवार की कथा सुनने के बहुत से पूर्णालाभ पुराणों में भी वर्णित हैं।
Sawan Vrat Katha ka Mahatva : सावन सोमवार कथा सुनने के जाने महत्व
सावन में सोमवार व्रत तभी पूर्ण माना जाता है जब उसकी कथा भी सुनी जाए। यदि आप उपवास नहीं कर रहे तो भी आपको सावन सोमवार व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए। सावन सोमवार कथा सुनने के अनेक पुण्य लाभ हैं। सावन सोमवार का व्रत यदि कुवांरी लड़कियां रखती हैं तो उन्हें मनचाहा वर मिलता है। वैवाहिक जीवन में सुख और शांति आती है और पति की आयु लंबी होती है। इतना ही नहीं मनचाहा वरदान शिवजी अपने भक्तों को प्रदान करते हैं। तो आइए, जानें क्या है सावन सोमवार व्रत कथा।
Sawan Somwar Vrat Katha : सावन सोमवार की संपूर्ण व्रत कथा
एक नगर में रहने वाले साहूकार के पास किसी चीज की कमी नहीं थी। उसके पास सारे ही सुख और वैभव के इंतजाम थे, लेकिन उसके जीवन में एक बहुत ही बड़ा दुख था। उसकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उसने पूरी श्रद्धा से सोमवार का व्रत रखना शुरू कर दिया। वह शिवालय जाकर भगवान शिव व देवी पार्वती की विधि-विधान पूजा करने लगा। उसकी भक्ति देख देवी पार्वती बेहद प्रसन्न हुईं और भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने की विनती की। तब भगवान शिव ने कहा, ‘हे पार्वती जिस व्यक्ति के भाग्य में जो होता है, उसे वही मिलता है। हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है, लेकिन देवी पार्वती ने शिवजी से जिद्द कर उसकी मनोकामना पूर्ण करने को कहा। भगवान ने देवी पार्वती के जिद्द को पूरा करते हुए साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान दे दिया, लेकिन यह भी बताया कि बालक अल्पआयु होगा। 12 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्यु हो जाएगी। साहूकार माता पार्वती और भगवान शिव की बातें सुन रहा था, इसलिए शिवजी के इस वरदान से न खुशी हुई न दुख। वह पहले की तरह पूजा करता रहा।
राजकुमार की जगह जब बेटे को भेज दिया
कुछ समय के बाद साहूकार को पुत्र की प्राप्ति हुई और जब वह 11 साल का हुआ तो साहुकार ने बेटे को मामा के साथ काशी पढ़ने के लिए भेज दिया। साथ ही पुत्र को धन देकर कहा कि रास्ते में वह यज्ञ व ब्राह्मणों को भोजन करवाते हुए जाए। मामा-भांजे काशी की ओर चल दिए। रास्ते में एक नगर पड़ा जहां राजा की कन्या का विवाह होने जा रहा था, लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था, वह काना था। यह बात राजा को नहीं पता था इसलिए वहां मौजूद साहूकार के बेटे को देख कर सबने उसे दूल्हा बनाने की सोची। साथ ही यह शर्त रखी की साहूकार के बेटे को वह विवाह के बाद धन दे देगा और राजकुमारी को अपने नगर लेता जाएगा। बहुत मनाने के बाद साहूकार का पुत्र मान गया।
राजकुमार ने खोली पोल
साहूकार के लड़के ने राजकुमार की जगह ले ली और उसका विवाह राजकुमारी से हो गया, लेकिन विवाह के पश्चात उसने राजकुमारी को बताया कि ‘तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है, लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा, वह एक आंख से काना है। मैं काशी पढ़ने जा रहा हूं। जब राजकुमारी को यह बात पता चली तो उसने अपने पिता को यह बात बता दी और राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया।
शिवजी ने दिया जीवित होने का वरदान
इसके बाद साहूकार का लड़का अपने मामा के साथ काशी आ गया और उसके बाद वहां यज्ञ करने लगा। यद्ध के दिन ही वह 12 वर्ष का हो गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है, वह सोने जा रहा है। सोते-सोते ही उसकी मृत्यु हो गई और विलाप शुरू हो गया। तभी भगवान शिव व माता पार्वती उधर से गुजर रहे थे। माता पार्वती ने भगवान से कहा , स्वामी मुझे किसी के रोने का स्वर सहन नहीं हो रहा। कृप्या आप उसका कष्ट दूर करें। तब शिवजी ने देवी को बताया कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसकी अल्पायु थी। देवी पार्वती भावुक हो गई और कहा कि, भगवन आप इस लड़के की आयु बढ़ा दें वरना इसके माता-पिता की पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर मौत हो जाएगी। देवी पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने लड़के को जीवित होने का वरदान दे दिया।
राजा ने पहचान कर राजकुमारी से कराया फिर विवाह
साहूकार का बेटा शिक्षा पूरी करने के बाद वह अपने नगर लौट रहा था। बीच में उसी नगर में वह रुका जहां वह राजकुमारी से विवाह किया था। वहां आते ही राजा ने उसे पहचान लिया और उसे महल ले गए और उसका विवाह पुन: राजकुमारी से करा कर उसे अपनी पुत्री के साथ उसके घर विदा कर दिया। साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे बेटे का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने प्रण लिया था कि अगर उसका बेटा नहीं लौटा तो वह प्राण त्याग देंगे लेकिन अचानक बेटे को बहु संग देख वह बेहद प्रसन्न हो गए।
सोमवार व्रत करने और कथा सुनने का मिला लाभ
उसी रात भगवान शिव ने साहूकार को सपना दिया और कहा कि उसके सोमवार व्रत करने और व्रत कथा सुनने के कारण उसका पुत्र उसे वापस दे दिया है। इसलिए सोमवार व्रत व कथा सुनने से मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
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