जन्मकुंडली में पंचम भाव से संतान के बारे में विचार करते हैं। पंचम व पंचमेश की स्थिति ही सन्तान के बारे में जानकारी देती है। पंचम भाव से संतान की संख्या के बारे में विचार करते हैं। पंचम से पंचम पर भी विचार आवश्यक है। प्रथम संतान कैसी होगी, उसकी शिक्षा कैसी होगी व उसके बारे में सम्पूर्ण विवरण पंचम भाव से ही आता है।
द्वितीय संतान के बारे में विचार पंचम से पंचम यानी सप्तम भाव से करते हैं। यदि सप्तम भाव में गुरु है तो पुत्र होगा व विद्वान होगा। यदि सप्तम भाव में चन्द्रमा है तो द्वितीय संतान बहुत ही योग्य पुत्री होगी। यदि पंचम भाव का स्वामी सप्तम में है व वह शुक्र है तो ऐसा द्वितीय पुत्र बहुत ही बड़ा कलाकार व फिल्म निर्देशक होगा। यदि वह शनि है तो द्वितीय पुत्र न्याय के फील्ड में बड़ा अधिकारी होगा। शुक्र व चन्द्रमा द्वितीय संतान पुत्री को फाइनेंस या कारपोरेट ला के फील्ड में खूब नाम व प्रतिष्ठा प्रदान करवाता है।
यदि सप्तमेश गुरु या सूर्य होकर पंचम भाव में बैठा हो तो द्वितीय सन्तान पुत्र होती है तथा उसके राजनीति या प्रशासन में जाने के संयोग ज्यादा होते हैं।
सप्तमेश नवम में हो या नवमेश सप्तम में हो तो द्वितीय पुत्र के बाद पिता का भाग्योदय होता है। नवम भाव व दशम से पिता सुख का विचार भी होता है। लग्नेश सप्तम में हो तथा शुक्र या चन्द्रमा हो तो द्वितीय संतान पुत्री होनी चाहिए तथा यदि गुरु या सूर्य हो तो पुत्र होता है। सप्तम राहु द्वितीय सन्तान को बीमार करता है। सप्तम मंगल बहुत अच्छा नहीं होता है। सप्तम शनि द्वितीय संतान को विद्वान बनाता है।
इस प्रकार हम द्वितीय संतान के बारे में विचार कर सकते हैं तथा उसके करियर व जीवन के बारे थोड़ा अनुमान लगा सकते हैं।
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