सूर्य के पुत्र और यम के भाई हैं शन‍ि, क्‍यों रहते हैं पिता से नाराज

आध्यात्म
Updated Jan 05, 2018 | 19:49 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

शन‍ि देव यूं तो सूर्य देव के पुत्र हैं लेकिन दोनों के संबंध कभी अच्‍छे नहीं रहे। शन‍ि की टेढ़ी नजर की एक कथा सूर्य देव से ही जुड़ी है...

Shani Dev  |  तस्वीर साभार: BCCL

नई द‍िल्‍ली: शनि को एक क्रूर ग्रह माना जाता है जिनकी दृष्‍ट‍ि विनाशकारी मानी जाती है। लेकिन ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, शनि को न्यायधीश या दंडाधिकारी माना गया है।

मान्‍यता है कि शन‍ि देव किसी भी तरह के अन्‍याय या गलत बात को बर्दाश्‍त नहीं करते और ऐसा करने वाले को उनके गुस्‍से का श‍िकार होना पड़ता है। उनके जन्‍म को लेकर भी अलग-अलग मान्‍यताएं हैं। हालांकि अपने पिता सूर्य के साथ उनके संबंध कभी अच्‍छे नहीं रहे। 

सूर्य पुत्र हैं शन‍ि, यमराज के हैं भाई 
स्कंदपुराण के काशीखंड में वर्ण‍ित एक कथा के अनुसार - राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। 

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वक्‍त के साथ सूर्य देव और संज्ञा की वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतान हुईं। लेकिन संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थी। सूर्य के तेज को कम करने के लिए संज्ञा ने अपनी हमशक्ल संवर्णा को पैदा किया और बच्‍चों की देखरेख का जिम्‍मा उसको सौंपकर खुद अपने पिता के घर चली गई। 

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दूसरी ओर पिता ने संज्ञा का साथ नहीं द‍िया तो वह वन में घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई। दूसरी ओर छाया रूप होने की वजह से संवर्णा को सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्य देव और संवर्णा की तीन संताने हुईं - मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती)। 

शन‍ि देव क्‍यों हैं पिता के विरोधी 
एक अन्य कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ। छाया शिव की भक्तिन थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की इतनी कठोर तपस्या कि वे खाने-पीने की सुध तक उन्हें न रही। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रहे शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया। 

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जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रुक गई। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी और भोलेनाथ ने उनको उनकी गलती का अहसास करवाया। 

सूर्यदेव ने अपनी गलती के लिये क्षमा याचना की जिसके बाद उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ, वह फिर नहीं सुधर पाया। आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है।

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