नई दिल्ली: कांचीपुरम मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को गुरुवार के दिन लंबी वैदिक प्रक्रिया के बाद उनके गुरु के बगल में महासमाधि दे दी गई। महासमाधि से पहले पारंपरिक तरीके से पूजा-पाठ और सभी जरूरी संस्कार किए गए। जयेंद्र सरस्वती 69वें शंकराचार्य और कांची कामकोटि पीठ के पीठाधिपति थे। महासमाधि की प्रक्रिया गुरुवार सुबह शुरू हुई। इस मौके पर देशभर से नामी संत और मठ के लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। गौर हो कि कांचीपुरम मठ के 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का बुधवार को यहां के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। डॉक्टरों के मुताबिक हृदयाघात के कारण जयेंद्र सरस्वती का निधन हुआ।
महासमाधि क्या होती है?
दरअसल हर योगी का एक ही परम लक्ष्य होता है अस्तित्व के साथ एकाकार हो जाना। इसे ही महासमाधि कहते हैं। समाधि की सर्वोच्च अवस्था को महासमाधि कहा जाता है। हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शंकराचार्य कोई यूं ही नहीं बनाया जा सकता और आदि शंकराचार्य को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। हिंदू धर्म में शंकराचार्य सर्वोच्च पद होता है। किसी भी शंकराचार्य का आम व्यक्ति की तरह अंतिम संस्कार नहीं किया जाता बल्कि उसके पार्थिव शरीर को महासमाधि दी जाती है यानी उनके पार्थिव शरीर को जलाया नहीं जाता । इस दौरान उक्त शंकराचार्य को पद्मासान की अवस्था में ही वैदिक मंत्रोच्चार और वैदिक विधि के जरिए महासमाधि मठ में दी जाती है। यह पूरी प्रक्रिया संतों और जानकार पंडितों की अगुवाई में संपन्न की जाती है।
क्या होता है वृंदावन प्रवेशम?
पार्थिव देह को दफनाने की प्रकिया जिसे वृंदावन प्रवेशम कहा जाता है जिसे अभिषेकम (स्नान) के साथ शुरू किया जाता है। अभिषेकम के लिए दूध और शहद जैसे पदार्थों का इस्तेमाल होता है। अभिषेकम की प्रक्रिया श्री विजयेंद्र सरस्वती एवं परिजन की मौजूदगी में पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मठ के मुख्य प्रांगण में की गई। जयेंद्र सरस्वती का पार्थिव शरीर बाद में वृंदावन उपभवन ले जाया गया। इसी जगह पर उनके पूर्ववर्ती श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के अवशेष वर्ष 1993 में रखे गए थे। इस दौरान दूध और शहद से शंकराचार्य का अभिषेक करने के बाद उनकी देह को सजाया गया। वैदिक हवन-पूजन के बाद जयेंद्र सरस्वती का (पार्थिव शरीर का) वृंदावन भवन में प्रवेश हुआ। यहां महासमाधि के लिए गड्ढा खोदा गया। उसके बाद वैदिक मंत्रोच्चार और विधि-विधान के साथ महासमाधि की पूरी प्रक्रिया की गई।
समाधि की अवस्था में अंतिम संस्कार
शैव परंपरा के मुताबिक संन्यासियों का अंतिम संस्कार समाधि से होता है। इसे महासमाधि कहा जाता है। यानी उस अमुक संत (शैव संन्यासी) के देहावसान के उनके शव को समाधि की मुद्रा में बैठाया जाता है। संन्यासी परंपरा के अनुसार उन्हें केसरिया यानी भगवा वस्त्र पहनाया जाता है। रुद्राक्ष की माला, फूलों की माला और भस्म से उनको सजाया जाता है। शंकराचार्य की शवयात्रा को महासमाधि यात्रा के रूप में निकाला जाता है । पार्थिव देह को पालकी या रथ में बैठाकर निकाला जाता है। फिर आश्रम या मठ में ही किसी स्थान पर 7 फीट गहरी समाधि बनाकर उसमें अंतिम संस्कार किया जाता है। संत के पार्थिव शरीर को पद्मासन की मुद्रा में समाधि दी जाती है। समाधि देने की पूरी प्रक्रिया जब संपन्न हो जाती है तो उसे महासमाधि करते हैं।
जयेंद्र सरस्वती का जन्म तमिलनाडु में हुआ
जयेंद्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु में हुआ। वे कांची मठ के 69वें शंकराचार्य थे। जयेंद्र 1954 में शंकराचार्य बने थे। इससे पहले उनका नाम सुब्रमण्यन महादेव अय्यर था। उन्हें सरस्वती स्वामिगल का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। तब उनकी उम्र महज 19 साल थी। जयेंद्र 65 साल तक शंकराचार्य रहे। 2003 में उन्होंने बतौर शंकराचार्य 50 साल पूरे किए थे। 1983 में जयेंद्र सरस्वती ने शंकर विजयेन्द्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
विवादों में भी रहे, जाना पड़ा था जेल
चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती स्वामी ने जयेंद्र सरस्वती को अपने वारिश के तौर पर उनका अभिषेक किया था। उनको 22 मार्च 1954 को जयेंद्र सरस्वती का पदनाम प्रदान किया गया था। दक्षिण भारत में जयेंद्र सरस्वती के काफी अनुयायी हैं। उन्होंने केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई में 1998 से 2004 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय रामजन्म भूमि विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की बात कही थी। पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की सरकार के दौरान 2004 में वह विवादों में आए और कांचीपुरम के वरदराज पेरुमल मंदिर के अधिकारी शंकर रमण की हत्या के आरोप में उनको गिरफ्तार किया गया। इस मामले की सुनवाई तमिलनाडु से बाहर पुडुचेरी में हुई जहां अदालत ने 2013 में मठ के कनिष्ठ संत विजयेंद्र और 21 अन्य समेत उनको बरी कर दिया।
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