Sharad Purnima 2021 Vrat Katha, Vidhi: हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। मान्यता है, कि इस दिन मां लक्ष्मी साक्षात बैकुंठधाम से पृथ्वी पर आगमन करती हैं। आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी पुकारा जाता हैं। इस साल यह पूर्णिमा 20 अक्टूबर यानी आज है। मान्यता के अनुसार इसी दिन से शरद ऋतु का आगमन हो जाता है। धर्म के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था। यदि आप आयु, धन, संपत्ति प्राप्त करने के लिए शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धा के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करें, तो माता प्रसन्न होकर आपको मनवांछित फल भी दे सकती हैं। तो आइए चले शरद पूर्णिमा की पूजा विधि, कथा और उनके महत्व को जानने।
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा का व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण हो जाती है। शास्त्र में इस पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ रास लीला रची थी। यह व्रत व्यक्ति को रोगों से मुक्ति दिलाता है।
शरद पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक साहूकार के घर दो सुशील कन्या थी। बड़ी बहन श्रद्धा भाव से धार्मिक कामों को किया करती थी। लेकिन छोटी धार्मिक चीजों में बिल्कुल मन लगाकर काम नहीं करती थी। बड़े होने के बाद साहूकार ने दोनों बेटियों की शादी कर दी। शादी होने के बाद दोनों बहने शरद पूर्णिमा का व्रत किया। बड़ी ने बड़ी श्रद्धा के साथ शरद पूर्णिमा का व्रत पूरा किया। लेकिन छोटी ने अधूरे ढंग से इस व्रत को पूरा किया है।
मर जाती है संतान
इसकी वजह से उसकी संतान जन्म लेने के कुछ ही दिनों बाद मर जाती थी। संतान के मर जाने के कारण वह बड़ी दुखी रहने लगी। तब उसने अपने दुखों का कारण महात्मा से पूछा। तब महात्मा ने उसे बताया कि तुम्हारा मन पूजा पाठ में नहीं लगता है और तुमने शरद पूर्णिमा का व्रत भी श्रद्धा पूर्वक नहीं किया था। इसी वजह से तुम्हारा पुत्र बार-बार मर जाता है। यदि तुम श्रद्धा पूर्वक शरद पूर्णिमा का व्रत करो तो तुम्हारी यह समस्या बहुत जल्द दूर हो सकती है।
वापस हो गई नि:संतान
महात्मा का यह वचन सुनकर उसने तुरंत ही व्रत करना शुरू कर दिया। लेकिन फिर भी उसका पुत्र जीवित नहीं बचा। तब उसने अपनी मरी हुई संतान को एक चौकी पर सुलाकर अपनी बड़ी बहन को घर बुलाया और अनदेखा कर बहन को उस चौकी पर बैठने को कहा। जैसे ही बहन उस चौकी पर बैठने गई, उसके स्पर्श होते ही बच्चा रोने लगा।
जीवित हो उठा पुत्र
यह देख कर बड़ी बहन चौक सी गई और उसने कहा, अरे तू मुझे कहां बैठा रही थी, यहां तो तुम्हारा लाल सोया है। अभी मैं अगर यहां बैठ जाती, तो यह मर ही जाता। तब छोटी बहन ने अपनी बड़ी बहन को अपने पुत्र के मर जाने की पूरी कथा कही। बड़ी बहन के पुण्य कर्मों की वजह से उसके स्पर्श होते ही छोटी बहन का पुत्र जीवित हो उठा। उसके बाद से ही सभी गांव वाले शरद पूर्णिमा का व्रत करना प्रारंभ कर दिए।
शरद पूर्णिमा की व्रत विधि
शरद पूर्णिमा के दिन व्रती सुबह-सुबह स्नान ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। अब भगवान की प्रतिमा के सामने धूप, दीप जलाकर श्रद्धा पूर्वक पूजा करें। पूरे दिन उपवास रखें। शाम के समय मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना चंदन, दीप, सुगंध, फूल चढ़ाकर करें। रात में भगवान चंद्रमा का दर्शन कर उनका पूजन करें और फिर अपना उपवास खोलें। रात्रि में भजन कीर्तन कर प्रसाद का वितरण करें।
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