मुंबई. भगवान शिव शंकर के कई स्वरूपों का शास्त्रों में वर्णन किया गया है। इनमें से एक रौद्र रूप भी है। रौद्र रूप में भगवान शंकर तांडव करते हैं। रौद्र रूप में भोले शंकर के तांडव को रौद्र तांडव भी कहते हैं।
भगवान शिव के तांडव नृत्य के दो स्वरूप है। पहला रूप उनके क्रोध का परिचायक है। इसे प्रलयंकारी रौद्र तांडव भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार एक बार माता सती भगवान शिव के साथ अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित हवन में हिस्सा लेने आई थीं।
हवन में भोलेनाथ का अपमान हुआ। ये देख, माता सती ने अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इस घटना से महादेव इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने रुद्र तांडव शुरू कर दिया। इसके कारण पूरी सृष्टि पर प्रलय जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई।
आनंद में भी करते हैं तांडव
ऐसा नहीं है कि भगवान शिव केवल क्रोध में ही तांडव करते हैं। भगवान शिव का आनंद प्रदान करने वाला भी एक तांडव नृत्य है। वहीं, आनंद में तांडव करने वाले शिव को नटराज कहा जाता है।
मान्यताओं के अनुसार आनन्द तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है। वहीं, रौद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता है। नटराज में नृत्य का जो रूपक है वह नाद से भी जुड़ा है।
जब रावण ने रचा शिव तांडव स्त्रोत
रामायण में शिव तांडव का जिक्र मिलता है। एक बार अभिमान से भरा रावण अपने पुष्पक विमान पर सवार होकर भ्रमण पर निकला। उसने ये विमान कुबेर से छीना था। वहीं, कैलाश पर्वत के पास पहुंचकर विमान की गति धीमी पड़ गई।
रावण को गुस्सा आ गया। उसे कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश की। इससे भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया। शिवजी ने रावण का अहंकार चूर करने के लिए कैलाश पर्वत को नीचे गया। रावण के दोनों हाथ पर्वत के नीचे दब गए। इसके बाद रावण ने शिव तांडव स्त्रोत रचा था।
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