हिंदू धर्म के सभी देवताओं में शिव का अग्रणी स्थान है। भगवान शिव को निराकार और क्रोध का देवता माना जाता है। अन्य देवताओं की अपेक्षा इनका रंग रुप, वेश भूषा और यहां तक कि सवारी भी काफी अलग है।
भोलेशंकर को हम गले में सर्प, जटाओं में गंगा और सिर पर चंद्रमा धारण किये हुए देखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा क्यों विराजमान रहता है। आइये जानते हैं इसके पीछे क्या है मान्यता।
ये है मान्यता
मान्यता है कि भगवान शिव ने इस ब्रह्मांण और सृष्टि की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था। विष के प्रभाव से जब भगवान शंकर का शरीर गर्म होने लगा तब चंद्रमा ने भोलेशंकर के सिर पर विराजमान होकर उन्हें शीतलता प्रदान करने की प्रार्थना की। लेकिन शिव ने चंद्रमा के आग्रह को नहीं माना। लेकिन जब भगवान शंकर विष के तीव्र प्रभाव को सहन नहीं कर पाये तब देवताओं ने सिर पर चंद्रमा को धारण करने का निवेदन किया। जब भगवान शिव ने चंद्रमा को धारण किया तब विष की तीव्रता कम होने लगी। तभी से चंद्रमा शिव के सिर पर विराजमान हैं।
चंद्रमा से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्र के साथ किया था। लेकिन चंद्र इनमें से सिर्फ रोहिणी को ही अधिक प्रेम करते थे। अन्य कन्याओं ने जब अपने पिता से चंद्र की शिकायत की तब दक्ष ने क्रोध में आकर चंद्र को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया। इसके बाद चंद्र का शरीर धीरे धीरे क्षीण होने लगा तब नारदजी ने उन्हें शिव की आराधना करने के लिए कहा।
जब चंद्र की अंतिम सांसें चल रही थी तब प्रदोषकाल में शिव ने चंद्र को अपने सिर पर धारण करके उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया और क्षय रोग से उनकी रक्षा की। कहा जाता है कि तभी से चंद्रमा शिव के सिर पर विराजमान हैं।
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