पितृपक्ष में पूर्वज धरती पर आते हैं और वे अपने वंशजों से अपने लिए श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। इसलिए पितरों के निमित तर्पण करने के साथ उनके लिए भोजन और दान जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि ब्राह्मणों के मुख द्वारा ही देवता ’हव्य’ एवं पितर ’कव्य’ ग्रहण करते हैं। आप चाहें तो पितृपक्ष के पूरे सोलह दिन दान और भोज ब्राह्मणों को खिला सकते हैं अथवा जिस दिन आपके पितरों के श्राद्ध की तिथि हो उस दिन विधिवत श्राद्धकर्म करें।
एक बात हमेशा ध्यान दें कि जब भी पितरों के नाम पर ब्राह्मणों भोज कराया जाता है तो कुछ नियम का पालन करना जरूरी होता है। श्राद्ध भोज के आठ नियम हैं और इन नियमों के साथ कार्य करने से पितरों को शांति मिलती है। तो आइए जानें क्या हैं, ये नियम।
जानें, श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण भोजन के भी विशेष नियम क्या हैं
श्राद्धकर्म यदि नियमों के साथ किए जाते हैं तो उसका पूर्ण लाभ पितरों को प्राप्त होता है। इसलिए नियमों का विशेष ध्यान रखें।
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