यदि आपको लगता है कि केवल पितृदोष या पितृ ऋण ही होता है तो आपको यह जानना जरूरी है कि मनुष्य पर कई तरह के ऋण लगते हैं। ये ऋण तब लगते हैं जब, मनुष्य से कोई गलती होती है अथवा अपने बुरे कर्मों से वह किसी को दुखी करता है। बता दें की ये ऋण भले ही पूर्वजों का हो लेकिन उनके पाप पूरे वंश को झेलना पड़ा है, इसलिए आपको पितृपक्ष में इन ऋणों को उतारने के लिए भी उपाय करने चाहिए। कुंडली में ग्रहों की स्थिति से यह जाना जा सकता है कि किस जातक पर किसका ऋण है। इसके लिए आप किसी विशेषज्ञ की मदद भी ले सकते हैं। तो आइए जानें ये ऋण कौन से हैं और इससे कैसे मुक्त हो सकते हैं।
इन ऋणों या दोष के बारे में भी जानें
पितृ ऋण: पितृ ऋण कई प्रकार के होते हैं। ये ऋण मनुष्य के कर्मों के अनुसार भी लगता है। ये ऋण पिता, भाई, बहन, मां, पत्नी, बेटी और बेटे का होता है। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं।
स्वत: निर्मित दोष : पूर्व जन्म में किए गए कर्मों के कारण भी स्वत: निर्मित दोष लगता है। जातक अपने पूर्व जन्म में किए अधर्म के कारण ऐसे दोष खुद बटोरता है
- धर्म विरोधी का अर्थ है कि आप भारत के प्रचीन धर्म हिन्दू धर्म के प्रति जिम्मेदार नहीं हो। पूर्व जन्म के बुरे कर्म, इस जन्म में पीछा नहीं छोड़ते। अधिकतर भारतीयों पर यह दोष विद्यमान है। स्वऋण के कारण निर्दोष होकर भी उसे सजा मिलती है। दिल का रोग और सेहत कमजोर हो जाती है। जीवन में हमेशा संघर्ष बना रहकर मानसिक तनाव से व्यक्ति त्रस्त रहता है।
पूर्वजों के कर्मों का ऋण : यदि आपके पूर्वजों ने अपने अधार्मिक कार्यों से पाप बटोरा है तो उसका ऋण आपके ऊपर भी आएगा। ऋण पीढ़ियों दर पीढ़ियों चलता रहता है, यदि इसे पितृपक्ष में उतारा न जाए तो।
मातृ ऋण : मातृ ऋण जिस पर होता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता है। ऐसे जातक कर्ज में दब जाते हैं और उनके घर में शांति नहीं होती। मातृ ऋण तब लगता है जब जातक मां का या मां समान महिला के साथ बुरा व्यवहार करता है अथवा उसे किसी भी तरह का कष्ट देता है।
बहन का ऋण : बहन का ऋण जब जातक पर होता है तो उसका व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष बहुत होता है। ऐसे लोगों के अंदर जीने की चाह तक खत्म् होने लगती है। बहन के ऋण के कारण 48वें साल तक संकट बना रहता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है। बहन का ऋण तब लगता है जब बहन को कष्ट दिया जाता है अथवा उसके साथ अन्याय किया जाता है।
स्त्री ऋण : स्त्री ऋण तब लगता है जब आप किसी स्त्री को किसी भी प्रकार से प्रताड़ित किए हों। स्त्री को धोखा देना, हत्या करना, मारपीट करना, किसी स्त्री से विवाह करके उसे प्रताड़ित कर छोड़ देना, बलात्कार आदि कार्य करने वाले पर ये ऋण लगता है। जिस जातक पर ये ऋण होता है वह अपने अगले जन्म में इस ऋण का पाप भोगता है। ऐसे जातक को कभी स्त्री और संतान सुख नसीब नहीं होता। घर में हर तरह के मांगलिक कार्य में विघ्न आता है।
गुरु ऋण : गुरु ऋण को शनि का ऋण भी माना गया है। ये ऋण उसे लगता है, जिसने धोखे से किसी का मकान, भूमि या संपत्ति को हड़प लिया हो, या संपत्ति के लिए हत्या की हो, अथवा गुरु का अपमान किया हो।
राहु-केतु का ऋण : ये ऋण अजन्मे का ऋण कहलाता हैं। इस ऋण के कारण व्यक्ति मरने के बाद प्रेत बनता है। किसी संबंधी से छल करने के कारण या किसी अपने से ही बदले की भावना रखने अथवा पेट में ही बच्चे को मार देने वाले को ये ऋण लगता है। सिर में गहरी चोट,निर्दोष होते हुए मुकदमे का दंश आदि झेलना पड़ता है। अनबोलते जीव को मारने से भी ये ऋण लगता है।
ब्रह्मा दोष या ब्रह्म ऋण : ब्रम्ह ऋण का मतलब केवल किसी ब्राह्मण की हत्या से ही नहीं बल्कि भेदवाव, छुआछूत से भी लगता है। ब्रह्म दोष हमारे पूर्वजों, हमारे कुल, कुल देवता, हमारे धर्म, हमारे वंश आदि से जुड़ा होता है। कई बार लोग अपने पितृ धर्म, मातृभूमि या कुल को छोड़कर चले गए हैं। उनके पीछे यह दोष कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। ऐसे लोगों को प्रेत योनी मिलती है।
लाल किताब से जानें, इन ऋणों से मुक्ति के उपाय
पितृपक्ष में हर दिन कर्पूर जलाएं और अपने पितरों के साथ अपने ऊपर लगे ऋण के लिए मांफी मांगे। प्रतिदिन सुबह और शाम को कर्पूर जरूर जलाएं।
तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़ और घी को गाय के गोबर से बने उपले पर रख कर जलाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ें और अपने कर्मो के लिए क्षमा याचना करें।
पितृपक्ष में तर्पण केवल पूर्वजों के नाम पर ही नहीं जिनका ऋण हो उनके नाम पर भी करें।
घर का वास्तु सुधारे और ईशान कोण को मजबूत एवं वास्तु अनुसार बनाएं।
परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में सिक्के एकत्र कर उसे मंदिर में दान दें।
पितृपक्ष में कौए, चिढ़िया, कुत्ते और गाय को रोटी खिलाते रहना चाहिए। पीपल या बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं। दक्षिणमुखी मकान में कदापी नहीं रहें। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से हर तरह के ऋण व दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही एकादशी के व्रत करें।
तो इन उपायों से आप हर तरह के ऋण से मुक्ति पा सकते हैं। पितृपक्ष में इन उपायों को करें और आपने ऋण का उद्धार करें।
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