भूमि पेडनेकर ने पिछले दिनों अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने गांव और यहां स्थित प्राचीन मंदिर के बारे में बताया था। उन्होंने जिन तीन मंदिरों का जिक्र किया है, सभी 300 से 400 वर्ष पुराने हैं और ये हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ में माने गए हैं। रवलनाथ मंदिर के आस पास अन्य मंदिर भी हैं। मौली देवी और भगवती देवी के मंदिरों के अलावा यहां स्थित रावनाथ मंदिर को देवकीकृष्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
ये मंदिर मुख्य रूप से अपनी अनूठी वास्तुकला और बनावट के लिए भी बहुत प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में नागरी, इस्लामी और पुर्तगाली वास्तुकला का मिश्रण नजर आता है। गोवा के मूल हिंदू मंदिरों को पुर्तगालियों ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया था, इसलिए इन मंदिरों की बनावट सामान्य मंदिरों की बनावट से भी अलग है। तो आइए आपको आज रावलनाथ मंदिर के बारे में बताएं।
एक मात्र मंदिर जहां माता देवकी के साथ में हैं भगवान श्रीकृष्ण
भगवान श्री कृष्ण का यह एकमात्र मंदिर है, जहांं वे अपनी माता देवकी के साथ में विराजे हैं। इसी कारण रावलनाथ मंदिर को 'देवकीकृष्ण' नाम से भी जाना जाता है। भूमि ने अपने इंस्टा पर भी बताया है कि 1902 में रावलनाथ मंदिर पर लिखी गई किताबों में पेडनेकरों का लिखित ब्यौरा है। मंदिर के बारे में इसकी औषधीय जल धारा और तमाम शक्तियों को लेकर कई कहानियां इन पुस्तकों में उल्लेखित हैं।
पणजी से 17 किलोमीटर दूर है ये मंदिर
पणजी कदंबा बस स्टैंड से रावलनाथ मंदिर 17 किमी की दूरी पर है जबकि वास्को डी गामा रेलवे स्टेशन से 34 किमी और मापुसा से 31 किमी की दूरी पर है। मुख्यत: यह मंदिर पोंडा तालुका के मार्सेला में स्थित है।'
वास्तुकला और बनावट है अलग
इस मंदिर को पिस्सो रावलनाथ के नाम से भी जाना जाता है और इसकी खासियत यह है कि ये कि इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण बाल रूप में अपनी मां देवकी के साथ हैं, जबकि इसके अलावा देश में कोई ऐसा मंदिर नहीं हैं, जहां वे देवकी माता के साथ विराजते हों। देवकी कृष्ण का मूल मंदिर मंडोवी नदी में चोडन (चोराओ) द्वीप पर था लेकिन इसे पुर्तगाली शासकों ने नष्ट कर दिया गया था। यही कारण है कि ये मंदिर सामान्य हिंदू मंदिरों के बजाय या तो एक चर्च या एक मस्जिद या महल की तरह दिखते हैं। 1530 और 1540 ईस्वी के बीच पहले इस मंदिर को मैम में स्थानांतरित किया गया और फिर 1540 और 1567 के बीच मार्सेल में अपने वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया। पहले यहां बहुत ही छोटा सा मंदिर था और 1842 में मंदिर को फिर से बनाया गया।
मां के साथ खड़ी मुद्रा में हैं बाल कृष्ण
मंदिर के गर्भगृह में माता देवकी और भगवान कृष्ण की प्रतिमा विराजित है। माता देवकी के पैरों के बीच बाल कृष्ण खड़ी मुद्रा में विराजित हैं। यह विशेष आसन अद्वितीय माना जाता है। श्रीकृष्ण और देवकी की प्रतिमांए काले पत्थर की हैं और इन्हें बहुत ही बारीकी से उकेरा गया है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्णक और माता देवकी के साथ ही भौमिका देवी,लक्ष्मी रावलनाथ,मल्लिनाथ,कात्यायनी और धाडा शंकर भी विराजित हैं।
आसपास हैं ये भी प्रसिद्ध मंदिर
श्री मंगेशी मंदिर
श्री मंगेशी मंदिर गोवा के पोंडा तालुक में प्रोल के मंगेशी गाँव में स्थित है। इस मंदिर के प्राथमिक देवता मंगेशेश हैं, जो भगवान शिव के एक अवतार हैं। इसे गोवा में सबसे बड़े और अक्सर देखे जाने वाले मंदिरों में से एक माना जाता है।
श्री महालसा मंदिर
श्री महालसा मंदिर पोंडा में मर्दोल नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के एक अवतार देवी महालसा को समर्पित है। इस मंदिर का उल्लेखनीय पहलू छह-मंजिला सजावटी दीपक स्तंभ है जिसे ‘गहनतम’ कहा जाता है।
शांतादुर्गा मंदिर परिसर
श्री शांतादुर्गा मंदिर का बड़ा परिसर पोंडा तालुका के कवलम गाँव की तलहटी में पणजी से लगभग 33 किमी (21 मील) की दूरी पर स्थित है। शान्तदुर्ग, कई गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों की कुलदेवी या पारिवारिक देवता की पूजा इस मंदिर में की जाती है। इस मंदिर की स्थापना 16 वीं शताब्दी में हुई थी।
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